प्रयागराज, 13 दिसम्बर। ‘‘गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देव महेश्वरः। गुरुःसाक्षात् परमब्रह्म, तस्मै श्रीगुरुवे नमः।। अर्थात गुरू ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर (शंकर भगवान) हैं, और गुरू ही साक्षात परम् ब्रह्म हैं। गुरू के बिना ज्ञान नहीं होता। माता-पिता भी व्यक्ति के प्रथम गुरू होते हैं जो संस्कार एवं जीवनशैली का ज्ञान कराते हैं। बाद में शिक्षक (गुरू) ही उसका विस्तार करते हैं। मैं भी इसी सूत्र के आधार पर श्रीमद्ज्ज्योतिष्पीठ के पूर्व शंकराचार्यों की स्मृति, संस्मरण और सम्मान में यह नव दिवसीय आराधना महोत्सव का कार्यक्रम करता हूँ।’’
श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने आज भगवान आदिशंकराचार्य मंदिर, श्रीब्रह्मनिवास-अलोपीबाग प्रयागराज में आज आयोजित नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में श्रीमद्भागवत कथा में उक्त बातें बताया।
मध्य प्रदेश से पधारे पूज्य व्यास आचार्य पं0 ओमनारायण तिवारी जी ने बड़ी संख्या में उपस्थित श्रीमद्भागवत कथानुरागी भक्तों को सरल भाषा में संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से मानवीय कृत्य गुरू महत्व एवं महाभारतकालीन युद्धनीतियों की विविध प्रकार से विवेचना किया। श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के पश्चात आरती की गई। इसके पश्चात भगवान मैदानेश्वर बाबा का भव्य रूद्राभिषेक पूजा श्रीशंकराचार्य स्वामी वासुदेवनंद सरस्वती जी द्वारा किया गया जिसमें 31 वेदपाठी विप्रों ने पूजा-आरती सम्पन्न कराया।
श्रीमद्ज्योतिष्पीठ प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया कि उक्त कार्यक्रम 15 दिसम्बर तक प्रतिदिन की भाँति चलता रहेगा। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दण्डी संन्यासी स्वामी विनोदानंद सरस्वती जी महाराज, दण्डी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, दण्डी संन्यासी ब्रह्मपुरी जी, ज्योतिष्पीठ संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पं0 शिवार्चन उपाध्याय, आचार्य पं0 अभिषेक मिश्रा, आचार्य पं0 विपिनदेवानंदजी, आचार्य पं0 मनीष मिश्रा, श्री सीताराम शर्मा, अनुराग जी, दीप कुमार पाण्डेय आदि विशेष रूप से सम्मिलित रहे।
Anveshi India Bureau