रथों, बग्घियों के अलावा घोड़ों को सुसज्जित किया गया था। सोने, चांदी के हौदे और सिंहासन पर संन्यासी विराजमान रहे। यमुना तट स्थित मौजगिरि आश्रम से दोपहर 12:30 बजे छावनी प्रवेश के लिए जूना अखाड़े का विशाल काफिला निकला।
देश के सबसे बड़े दशनामी परंपरा के संन्यासियों के अखाड़े के रूप में जूना अखाड़े की पेशवाई (छावनी प्रवेश) पूरे राजशाही अंदाज में हुई। इसमें देश-दुनिया से 10 हजार से अधिक नागा संन्यासियों ने हिस्सा लिया। शनिवार को अस्त्र-शस्त्र, बैंडबाजा के साथ सुसज्जित रथों पर जूना अखाड़े के संत सवार हुए। इस छावनी प्रवेश की पेशवाई में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद समेत 65 से अधिक महामंडलेश्वर शामिल रहे।
रथों, बग्घियों के अलावा घोड़ों को सुसज्जित किया गया था। सोने, चांदी के हौदे और सिंहासन पर संन्यासी विराजमान रहे। यमुना तट स्थित मौजगिरि आश्रम से दोपहर 12:30 बजे छावनी प्रवेश के लिए जूना अखाड़े का विशाल काफिला निकला। सबसे आगे अखाड़े के देवता चल रहे थे। इनके बादरमता पंच, शंभू पंच, श्री पंच, बूढ़ा पंच घोड़ों पर सवार होकर चल रहे थे। घोड़ों पर डंका-निशान और ध्वजा-पताकाएं लेकर नागा संन्यासी आगे बढ़ रहे थे।
शंखनाद, डमरूनाद के साथ ही तरह-तरहके बैंडबाजे पेशवाई के दौरान बज रहे थे। गुरु दत्तात्रेय की चरण पादुका भी रथारूढ़ रही। जूना अखाड़े के प्रवक्ता श्रीमहंत नारारायण गिरि ने बताया कि पूरे सजधज के साथ छावनी प्रवेश हुआ। इसमें 10 हजारे अधिक नागा संन्यासियों ने हिस्सा लिया। संन्यासिनियां और महिला महामंडलेश्वर भी रथों पर सवार होकर निकलीं। इसमें 65 से अधिक महामंडलेश्वर अलग-अलग रथों पर सवार रहे।
150 से अधिक रथों पर संतों की सवारियां निकलीं। जूना अखाड़े के संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने छावनी प्रवेश की तैयारियों को एक दिन पहले ही अंतिम रूप दे दिया था। इस विशाल छावनी प्रवेश में नागा संन्यासी अस्त्र-शस्त्र के साथ आगे चल रहे थे। इसमें बड़ी संख्या में किन्नर संत भी शामिल रहे। आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, जगद्गुरु, पीठाधीश्वर, महंत सहित अन्य पदाधिकारियों ने छावनी प्रवेश में हिस्सा लिया। छावनी प्रवेश के दौरान जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, जूना अखाड़े के अध्यक्ष महंत प्रेमगिरि,गर्गाचार्य मुचकुंद पीठाधीश्वर स्वामी महेंद्रानंद गिरि,जगद्गुरु स्वामी भुवनेश्वरी गिरिभी भी शामिल रहीं।
Courtsy amarujala.com