मामले में बस्ती के याची अशोक पांडेय एक विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं। प्रबंधन ने धोखाधड़ी, अन्य मामलों में ट्रायल कोर्ट से सजा पाए और हाईकोर्ट से जमानत पर छूटे एक शिक्षक का निलंबन रद्द कर उसे कार्यवाहक प्रधानाचार्य का प्रभार देकर जिला विद्यालय निरीक्षक को सहमति देने के लिए कहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए बीएसए और अपर शिक्षा निदेशक के पारित आदेश को निरस्त कर दिया। कहा, गंभीर सार्वजनिक अपराध का दोषी कार्यवाहक पदभार संभालने का हकदार नहीं। यह स्थापित कानून है कि नैतिक पतन से जुड़ी सजा किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रोजगार में पद संभालने का अधिकार नहीं देती है। न्यायमूर्ति अजीत कुमार की कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
मामले में बस्ती के याची अशोक पांडेय एक विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं। प्रबंधन ने धोखाधड़ी, अन्य मामलों में ट्रायल कोर्ट से सजा पाए और हाईकोर्ट से जमानत पर छूटे एक शिक्षक का निलंबन रद्द कर उसे कार्यवाहक प्रधानाचार्य का प्रभार देकर जिला विद्यालय निरीक्षक को सहमति देने के लिए कहा। इस संबंध में जिला विद्यालय निरीक्षक ने 12 जून 23 व अपर शिक्षा निदेशक ने छह अक्तूबर 23 को विवादित आदेश पारित किया था। इसके विरोध में याची ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई।
याची अधिवक्ता ने कहा कि प्रधानाचार्य का पद संस्था के प्रशासनिक प्रमुख का होता है। इस पर किसी ऐसे शिक्षक को नहीं बैठाया जा सकता, जो नैतिक अधमता से जुड़े मामले में दोषी पाया गया हो। प्रतिवादी के वकील ने कहा कि प्रतिवादी कार्यवाहक प्रिंसिपल का पद संभाल रहा था। ऐसे में बहाली पर वह अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू करने का हकदार है। दोनों पक्ष के तर्क को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि दोषी ठहराया गया व्यक्ति सहायक अध्यापक रह सकता है, लेकिन प्रधानाचार्य का हकदार नहीं।
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