इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 साल से लापता हत्या के मुजरिम को मिली उम्रकैद पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि मुजरिम की गैर मौजूदगी में भी अदालत गुण-दोष के आधार पर अपील का निस्तारण कर सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 साल से लापता हत्या के मुजरिम को मिली उम्रकैद पर मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि मुजरिम की गैर मौजूदगी में भी अदालत गुण-दोष के आधार पर अपील का निस्तारण कर सकती है। साथ ही इटावा के सीजेएम व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लापता मुजरिम को गिरफ्तार करनें का आदेश दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की अदालत ने इटावा के लक्ष्मण की ओर से ट्रायल कोर्ट के दंडादेश को चुनौती देने वाली अपराधिक अपील को खारिज करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने कहा है
करीब 43 साल बाद आये फैसलें में कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले को साबित करने के लिए साक्ष्य की मात्रा नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता की आवश्यकता होती है। भले ही दो गवाह पेश किये गये लेकिन उन्होंने बतौर चश्मदीद घटना की पुष्टि की। प्रकाश के स्रोत को साबित किया गया है। साथ ही घटना की एफआईआर शीघ्रता से दर्ज हुई है। कोर्ट ने हथियारों की बरामदगी पर उठे सवाल को भी खरिज कर दिया। कहा कि घटना के बाद, अभियुक्त तीन महीने फरार रहा। आत्मसमर्पण के बाद पुलिस हिरासत के बजाय जेल भेज दिया गया। ऐसे में अपराध में प्रयुक्त हथियार बरामद नहीं किया जा सका।
घटना 43 साल पहले इटावा के फफूंद थाना क्षेत्र की है। 25 अक्टूबर 1982 की रात एक बजे गांव के चौकीदार कुंजी लाल की गोली मार हत्या कर दी गई। मृतक के भतीजे श्याम लाल ने लक्ष्मण व शिवनाथ उर्फ कैप्टन को नामजद व चार अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। करीब तीन महीने फरार रहा कैप्टन पुलिस मुठभेंड में मारा गया जबकि लक्ष्मण ने कोर्ट में आत्म समर्पण कर दिया। विवेचना में पता लगा कि दोनों के खिलाफ आधा दर्जन से अधिक आपराधिक मामलें दर्ज थे।
मृतक चौकीदार उनकी गिरफ्तारी में पुलिस की मदद कर रहा था। इससे खफा होकर दोनों ने घटना को अंजाम दिया था। विवेचना के बाद पुलिस ने 15 फरवरी 1983 को लक्ष्मण के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जबकि अज्ञात मुल्जिमों का पता नहीं चला। 30 जुलाई 1983 को इटावा की सत्र अदालत ने लक्ष्मण को उम्रकैद व 5000 हजार रूपये अर्थदंड की सजा सुनाई। दंडादेश के खिलाफ दोषी लक्ष्मण ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।दलील दी कि अभियोजन में गवाह कई बनाये लेकिन ट्रायल कोर्ट में परीक्षण केवल दो का कराया गया।
पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद नहीं किये। हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी थी। इसके बाद वह अदालत में हाजिर नहीं हुआ। 2018 में अपील सुनवाई पर लगी तो उसके वकील भी पेश नहीं हुए। कोर्ट ने इटावा के सीजेएम से रिपोर्ट तलब की तो पता लग पिछले 30 साल से वह लापता है। हर सभंव प्रयास के बाद भी उसके मिलने की संभावना नहीं दिख रही। लिहाजा कोर्ट ने उसकी गैर मौजूदगी में अपील पर सुनवाई शुरू की और 43 साल बाद फैसला सुनाया।