प्रयागराज। निर्देशन अनुपमा साहू तथा नाट्य रूपांतरण सचिन चन्द्रा ने किया। द स्टेज फाउंडेशन के सौजन्य से नाटक में दिखाया गया कि बाबू रसिक लाल के हालत देखते देखते ऐसे बदले कि कुछ समय में ही वह शहर के रईसों में उनकी गिनती होने लगी। बाबू रसिक लाल जीवन को जीने पर विश्वास करते थे न कि जीवन को काटने पर । रसिक लाल के बच्चे अब बड़े हो गये तो कुछ समय में ही उनकी बड़ी बेटी का विवाह हो जाता है और अचानक उनके दामाद का देहान्त हो जाता है परन्तु रसिक बाबू का जीने का अन्दाज वही था। फिर कुछ साल के बाद पुत्र का भी विवाह तय हो गया और विवाह वाले दिन बड़े धूमधाम से विवाह की तैयारी चल रही थी कि अचानक सब कुछ मातम मे बदल जाता है क्योंकि ठीक उसी समय उसके पुत्र का आकस्मिक निधन हो जाता है तो लोगों मे बड़ा कौतुहल का विषय होता है कि अब क्या होगा। उधर बाबू रसिक लाल सभी से कहते है कि आज मेरे इकलौते पुत्र का विवाह है। देखो कोई कमी न होन पाये। और ठीक उसी समय मुस्कुरा कर आसमान की तरफ देखते हुये जैसे कह रहे हो और भी कुछ बचा हो तो कर लो । लेकिन मेरा अन्दाज वही रहेगा । मुख्य किरदार में मंच पर चंकी बच्चन. आर्यन नागर . गोपाल कुशवाहा . सुशान्त शुक्ला . शिखर . प्रिन्स पाण्डे तथा मंच परे अवनीश मिश्रा . मोहम्मद आबिद तथा अनुज इत्यादि रहे ।
Anveshi India Bureau