Sunday, September 14, 2025
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1971 की भारत-पाक जंग : डूबते जहाज को आखिरी वक्त तक नहीं छोड़ा कैप्टन मुल्ला ने

वर्ष 1971 पाक युद्ध में प्रयागराज के स्टेनली रोड निवासी कैप्टन मुल्ला ने न केवल पाकिस्तान की नाक में दम कर दिया था, बल्कि हमले में डूबते पोत से अफसरों संग नौसेना के कई जवानों की जान बचाई थी।

वर्ष 1971 पाक युद्ध में प्रयागराज के स्टेनली रोड निवासी कैप्टन मुल्ला ने न केवल पाकिस्तान की नाक में दम कर दिया था, बल्कि हमले में डूबते पोत से अफसरों संग नौसेना के कई जवानों की जान बचाई थी। उन्होंने मोर्चे पर फर्ज निभाते हुए नौ दिसंबर प्राणों की आहुति दे दी। मरणोपरांत कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला को महावीर चक्र प्रदान किया गया।

कैप्टन मुल्ला का जन्म 1926 में गोरखपुर में हुआ। उनके पिता तेज नारायण मुल्ला उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। वह जनवरी, 1946 में एक कैडेट के रूप में रॉयल इंडियन नेवी में शामिल हुए। सितंबर, 1958 में उन्हें लेफ्टिनेंट कमांडर के रूप में पदोन्नत किया गया। फरवरी 1971 में वह आईएनएस खुकरी में शामिल हुए और जहाज के कप्तान के रूप में कार्यभार संभाला।

इसी वर्ष भारत-पाक युद्ध छिड़ा, तो कैप्टन मुल्ला एनएनएस खुकरी, आईएनएस कुठार और आईएनएस कृपाण के फ्लोटिला कमांडर थे। उनकी जिम्मेदारी उत्तरी अरब सागर में दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाना और उन्हें बेअसर करना था। बताया जाता है कि नौसेना के रेडियो डिटेक्शन उपकरण ने तीन दिसंबर, 1971 को दीव बंदरगाह के आसपास एक पनडुब्बी की पहचान की। तब आईएनएस कुठार में कुछ तकनीकी समस्या आ गई।

पाकिस्तानी पनडुब्बी ने खुकरी पर किया फायर

 

इसके बाद आईएनएस खुकरी और आईएनस कृपाण को दुश्मन की पनडुब्बी के खतरे से निपटने के लिए भेजा गया। बताते हैं कि टोह लेने की क्षमता के कारण पाकिस्तानी पनडुब्बी हंगोर को खुखरी और कृपाण की गतिविधियों का पता चल गया। पाकिस्तानी पनडुब्बी ने निशाना साधकर खुकरी पर फायर किया। उस पर तैनात कैप्टन मुल्ला को मालूम पड़ा कि खुकरी में हमले से दो छेद हो चुके थे और पोत में तेजी से पानी भर रहा था।

 

जहाज को डूबता देख कैप्टन मुल्ला ने उसमें तैनात अफसरों और जवानों को समुद्र में कूदने को कहा। उन्होंने अपने दूसरे-इन-कमांड को लाइफबोट, राफ्ट और बोय को समुद्र में फेंकने का निर्देश दिया। कैप्टन मुल्ला ने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना जहाज में तैनात तमाम साथियों के बचाव के इंतजामों की निगरानी की। जहाज डूबने के दौरान भी उन्होंने बचाव अभियान का निर्देशन जारी रखा और अपनी लाइफ जैकेट भी जहाज के बावर्ची को पहनाकर उसे भी पानी में धकेल दिया।

 

वह खुद आईएनएस खुकरी के क्वार्टर डेक पर खड़े होकर शहादत का इस्तकबाल करने लगे। बताया जाता है उस दौरान कैप्टन मुल्ला की वजह से कई लोगों को बचाया जा सका।

कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला को उनके उत्कृष्ट साहस, नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए भारतीय नौसेना का पहला और देश का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार महावीर चक्र दिया गया।

 

 

Courtsy amarujala

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