इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामलों में यह पता लगाना जरूरी नहीं है कि बच्चे का असली पिता कौन है। अपराध साबित करने के लिए पितृत्व का निर्धारण आवश्यक नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामलों में यह पता लगाना जरूरी नहीं है कि बच्चे का असली पिता कौन है। अपराध साबित करने के लिए पितृत्व का निर्धारण आवश्यक नहीं है। इस टिप्पणी संग कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी की ओर से बच्चे की डीएनए जांच की मांग में दाखिल अर्जी खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने रामचंद्र राम की अर्जी पर दिया।
गाजीपुर निवासी राम चंद्र राम पर 22 जून 2021 को जमनिया थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। उस पर पीड़िता को उसके घर से अगवा कर दुष्कर्म करने का आरोप था। जिला न्यायालय में ट्रायल के दौरान पांच गवाहों के बयान दर्ज होने के बाद आरोपी ने पीड़िता और उसके बच्चे की डीएनए जांच कराने के लिए एक आवेदन दायर किया। राम ने दावा किया कि बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ था लेकिन वह पूरी तरह से विकसित था। इससे यह साबित होता है कि बच्चा उसका नहीं है।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि डीएनए जांच का आदेश केवल तभी दिया जाना चाहिए जब यह अत्यंत आवश्यक हो और मामले का फैसला करने के लिए इसके बिना सच्चाई तक पहुंचना संभव न हो। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि डीएनए जांच के गंभीर सामाजिक परिणाम होते हैं। केवल मजबूर और अपरिहार्य परिस्थितियों में ही इसका आदेश दिया जाना चाहिए।