अब पठारी इलाके में पाए जाने वाले सिलिका सैंड के अवशेष से रंग-बिरंगे शीशे बनेंगे। शंकरगढ़ को जहरीले रासायनिक तत्वों संग भूजल दोहन की समस्या से भी राहत मिलेगी। इविवि के वैज्ञानिकों के शोध में सफलता मिली है।
पठारी इलाके में पाए जाने वाले सिलिका सैंड की धुलाई के बाद जमा अवशेष भी कमाई का मजबूत आधार बनेंगे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अवशेष से रंगीन शीशा बनाने में सफलता पाई है। इसकी कीमत बाजार में अधिक है। खास यह कि नई तकनीकी से जहरीले रासायनिक तत्वों के अलावा भूजल दोहन की समस्या से भी राहत मिलेगी।
विवि के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस विभाग के प्रो.जयंत कुमार पति के नेतृत्व में शोधार्थियों की टीम ने यमुनापार के शंकरगढ़ में शीशा बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सिलिका सैंड के अवशेषों के 70 नमूने लिए। अलग-अलग स्थानों से लिए गए इन नमूनों को सात भाग में बांटकर शोध किया गया।