Saturday, December 20, 2025
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High Court : सड़क या सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध, पुलिस को बिना वारंट कार्रवाई का अधिकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पब्लिक गैंबलिंग एक्ट-1867 की धारा 13 के तहत सड़क या सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध है। इसमें एफआईआर और गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति जरूरी नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पब्लिक गैंबलिंग एक्ट-1867 की धारा 13 के तहत सड़क या सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध है। इसमें एफआईआर और गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति जरूरी नहीं है। इसी टिप्पणी संग न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ ने आगरा की विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित आपराधिक कार्रवाई पर कामरान की रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।

कोर्ट ने कहा कि जब किसी कानून में पुलिस अधिकारी को सीधे गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया हो। तो वह अपराध स्वतः ही संज्ञेय की श्रेणी में आता है। साथ ही सीआरपीसी की धारा 2(सी) के तहत पुलिस मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बिना एफआईआर भी दर्ज कर सकती है और मामले की जांच भी कर सकती है।

 

दिसंबर 2019 में कामरान को सिंकदरा में एक पार्क में कथित तौर पर ताश खेलने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उसके पास से 750 रुपये बरामद किए थे। मामले में चार्जशीट दाखिल की गई तो आरोपी ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। कहा कि पुलिस ने जिस मामले में गिरफ्तार किया है, उसमें अधिकतम सजा एक माह की है, जबकि तीन साल से कम की सजा वाले अपराध गैर-संज्ञेय होते हैं।

पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती और न ही अपराध की जांच का अधिकार है। पुलिस ने जांच शुरू करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति नहीं ली। इसलिए एफआईआर के बाद से की गई कार्रवाई शुरू से ही अमान्य है। इस पर कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी भी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है, जो पैसे के लिए जुआ खेलते हुए पाया जाए। साथ ही कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह तीन महीने में ट्रायल को पूरा करे।

कानून की मंशा साफ, पुलिस को पूरी छूट

 

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि पब्लिक गैंबलिंग एक्ट की धारा-13 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि पुलिस अधिकारी सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलते पाए जाने पर आरोपी को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे में यह मानने का कोई आधार नहीं है कि इस अपराध के लिए मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी। पुलिस न सिर्फ गिरफ्तारी कर सकती है, बल्कि सीधे एफआईआर दर्ज कर विवेचना भी कर सकती है।

 

 

Courtsyamarujala.com

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