माहे मुहर्रम की दसवीं को अकीदत के फूल दफन किए जाते हैं। हजारों लाखों शहीदों की शहादत के बाद जब जाकर इस्लाम पूरी दुनिया में फैला है। रसूल के नवासे हसन हुसैन की शहादत मना रहे हैं। सुबह से ही मेहंदी के फूल ताजियादार कर्बला में दफन करने के लिए निकल पडते हैं।
या अली या हुसैन की सदाओं के बीच बुधवार को ताजिए निकाले गए। अटाला, खुल्दाबाद, नूरउल्लाह रोड, घंटाघर, जानसेनगंज, विवेकानंद मार्ग, जीरो रोड, कर्बला आदि इलाकों में ताजिया जुलूस निकाला गया। जगह-जगह शर्बत, ठंडा पानी, हलवा, नमकीन, मिठाइ और बिरयानी का वितरण किया गया। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था का व्यापक बंदोबस्त किया गया था। जुलूस के चलते शहर के कई इलाकों में ट्रैफिक डावर्जन किया गया। इसके चलते लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
ताजिया इमाम बाडे, रख दिया जाता है। अकीदत के फूल से ताजिया भर जाता है। ताजिया उठने का वक्त हो जाता है। जोहर की नमाज के बाद ताजिया या अली या हुसैन लब्बैक या हुसैन के बुलंद नारे के साथ ताजिया उठाया जाता है। मकान और छत्तो से फूल बरसाए जाते हैं। बड़े ताजिया में गश्त करने के बाद। ताजिया जॉनसेन गंज की रोड पर आता है। हुसैनी सैलाब उमड़ पड़ता है। औरतें जियारत के लिए बेचैन थीं। बच्चों को बोबोसा कराया जा रहा था। कंधा देने वालों पर पानी के फव्वारे, गुलाब जल केवड़ा बरसाए जा रहे थे। बड़ी तादाद में औरतें ताजिया का दीदार करने आई थीं उनकी आंखें नम थीं। बड़ा ताजिया गश्त करते हुए जानसेन गंज चौराहे की तरफ बढ़ रहा था।
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