मेला प्रशासन की ओर से कुंभ 2019 की तरह ही अखाड़ों को झूंसी की तरफ त्रिवेणी से लेकर काली मार्ग के बीच बसाने बसाने की योजना बनाई गई है। इस बाबत उन्हें बृहस्पतिवार को जमीन के निरीक्षण के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन अखाड़ों के बीच ही विवाद हो गया।
महाकुंभ क्षेत्र में अखाड़ों के बसाने को लेकर गतिरोध दूर होता दिख रहा है। दूसरे धड़े के अखाड़ों ने भी शुक्रवार को जमीन का निरीक्षण कर वहां बसने की सहमति जताई है। खालसों को भी अखाड़ों के पास बसाने की मांग की गई, जिस पर मेला प्रशासन का सकारात्मक रुख है।
मेला प्रशासन की ओर से कुंभ 2019 की तरह ही अखाड़ों को झूंसी की तरफ त्रिवेणी से लेकर काली मार्ग के बीच बसाने बसाने की योजना बनाई गई है। इस बाबत उन्हें बृहस्पतिवार को जमीन के निरीक्षण के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन अखाड़ों के बीच ही विवाद हो गया। इसकी वजह से एक गुट में शामिल सात अखाड़े के प्रतिनिधियों ने ही जमीन का निरीक्षण किया। वहीं दूसरे गुट ने विरोध कर दिया था।
हालांकि, बृहस्पतिवार रात में ही दूसरे गुट के साथ बात कर शुक्रवार को सुबह 10 बजे जमीन निरीक्षण का समय तय किया गया था। इसी के अनुसार अखाड़ों ने चिह्नित भूखंड का निरीक्षण किया। इसमें निर्मल, निर्वाणी अनि, निर्मोही अनि, दिगंबर अणि, महानिर्वाणी तथा अटल अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल रहे।
अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने सुविधाएं एवं जमीन बढ़ाने के साथ वहां की कुछ खामियों को दूर करने की बात कही। इस पर मेला प्रशासन का सकारात्मक रुख रहा। प्रतिनिधियों ने खालसों को भी वैष्णव अखाड़ों के साथ बसाने की मांग की। कुंभ-2019 में 700 खालसे आए थे। महाकुंभ में यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है। मेलाधिकारी विजय किरन आनंद का कहना है कि अखाड़ों की इस मांग पर विचार किया जा रहा है। अखाड़ों की मांग पूरी करने की कोशिश की जाएगी।
इसके अलावा दोनों गुटों की ओर से विवाद के बाद दी गई तहरीर भी शुक्रवार को वापस ले ली गई। इस तरह से अखाड़ों के बसावट को लेकर गतिरोध दूर होता दिख रहा है। मेलाधिकारी विजय किरन आनंद का कहना है कि अखाड़ों के बीच का गतिरोध दूर हो गया है। उन्होंने साथ मिलकर सनातनी परंपरा को आगे बढ़ाने की बात कही है। इसके अलावा सभी अखाड़ों ने जमीन निरीक्षण के बाद निर्धारित स्थान पर बसाए जाने पर सहमति दे दी है। उन्होंने बताया कि दो-तीन दिनों में जमीन आवंटित कर बसावट शुरू कर दी जाएगी। मेलाधिकारी ने बताया कि परंपरा के तहत अन्य संस्थाओं को भी भूमि आवंटन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
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