Tuesday, July 8, 2025
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यूपी उपचुनाव: एक नारे से सब हारे, उपचुनाव ने ऐसे पलटी प्रदेश की राजनीतिक हवा, सपा को ले डूबा अति आत्मविश्वास

UP by-election:यूपी उपचुनाव के परिणाम बताते हैं कि एक नारे ने भाजपा के पक्ष में बहुत मजबूती से काम किया। संघ ने भी उस नारे का सपोर्ट किया। सपा की हार की वजहें भी साफ दिख रही हैं।

उपचुनाव के नतीजे आने के बाद जारी अपनी पहली प्रतिक्रिया का समापन मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी अपने लोकप्रिय संदेश के साथ यूं करते हैं-बंटेंगे तो कटेंगे। इसके बाद जोड़ा-एक हैं तो सेफ हैं (मोदी का दिया स्लोगन)। इन नतीजों का निहितार्थ यही नारा है। वोटों की गोलबंदी में यह नारा रामबाण साबित हुआ। बंटेंगे तो कटेंगे का सिंहनाद करीब चार महीने पहले उपचुनाव में योगी की सक्रियता के साथ ही हो गया था। सत्तापक्ष की इस चुनावी चकाचौंध में तब विपक्ष जागा-जागा सा आंखें मिचमिचा रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्षस्थ पदाधिकारियों ने मथुरा में हाल की बैठक में जब अपने हिंदू ह्रदय सम्राट की इस हुंकार पर हामी भर दी तो चुनाव की पिच बिलकुल साफ हो गई। नतीजे बताते हैं कि जातीय जनगणना की काट जातीय एकजुटता से करने का प्रयोग कारगर रहा।

पिछले और अगले विधानसभा चुनाव के लगभग मध्यावधि में हुए उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के नतीजे उपयोगी कौन, इस सवाल के जवाब की ओर इशारा कर रहे हैं। अमूमन उपचुनाव सत्तापक्ष के पक्ष में समर्थन प्रस्ताव पास कर खामोशी से गुजर जाने की लोकतांत्रिक रवायत रही है लेकिन इस बार ये उप चुनाव चुप चुनाव नहीं, खासे शोरगुल भरे रहे।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा को अपेक्षित नतीजे नहीं मिले थे। करीब पांच महीने बाद इस उपचुनाव को लेकर कई सियासी विश्लेषज्ञ आशंकाओं के बादल तैराने लगे थे लेकिन नतीजों में प्रदेश में भाजपा की वोटरों पर पकड़ साबित हुई। करीब ढाई साल बाद के विधानसभा के आम चुनाव की लाइन भी भाजपा ने करीब-करीब तैयार कर दी है। 

सपा को ले डूबा उसका अति आत्मविश्वास

UP by-election: Everyone lost due to one slogan, by-election changed the political atmosphere of the state, S
अखिलेश यादव – फोटो : पीटीआई
लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन पर इतराती सपा को उसका एटिट्यूड और ओवर कॉन्फिडेंस ले डूबा। तब सपा गठजोड़ इन नौ में से छह सीटों पर आगे रहा था, इस बार महज दो में ही सिमट गई। कार्यकर्ताओं के अनमनेपन ने भी उसका नुकसान किया। सपा मुखिया अखिलेश यादव सबको साथ लेकर चलने की कला में चूक गए। गठबंधन धर्म को धता बताते सपा ने सात सीटों पर एकतरफा अपने प्रत्याशी तय कर दिए। कांग्रेस को जो दो सीटें दीं, वो कांग्रेस ने खुद ही लौटा दी। कांग्रेसी उनके चुनाव में कतई न जुटे। प्रत्याशियों को पसंद करने में पुराने राजनीतिक परिवारों को तवज्जो नुकसानदेह साबित हुई। कटेहरी के सपा विधायक लालजी वर्मा सांसद बने तो ढाई साल बाद उनकी जगह उनके पत्नी को उतार दिया गया। कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरा तो नतीजा सामने है। कुंदरकी में सपा प्रत्याशी की छवि का ध्यान नहीं रखा तो खुद उनका वोट बैंक ही भाजपा की तरफ खिसक गया, बंटेंगे तो कटेंगे की गूंज को अनसुनी करता हुआ। करीब डेढ़ लाख वोटों से यह हार-जीत चुनावी इतिहास में अभूतपूर्व है।
करहल में भी सपा को झटका 
UP by-election: Everyone lost due to one slogan, by-election changed the political atmosphere of the state, S
सपा मुखिया ने अपनी पुश्तैनी सीट करहल पर अपने चचेरे भाई तेजप्रताप यादव को उतारा और यहां भी झटका खाया। यहां पिछले चुनाव के मुकाबले हार-जीत का फर्क घटकर 64 हजार से 14 हजार पर रह गया। यानी उसके वोटबैंक में सेंधमारी उसके गढ़ तक आ पहुंची है। पीडीए का नारा देकर परिवारीजन को प्रमुखता दिया जाना कहीं न कहीं समर्थकों के साथ-साथ वोटरों को भी खटका।

इस चुनाव में कुछ हैरतअंगेज घटनाएं भी हुईं। मुस्लिम वोटों के रहनुमा बनने को बेताब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने मीरापुर से पहली बार चुनाव लड़कर 18 हजार से ज्यादा वोट झटक लिए। मायावती की ठेकेदारी को चुनौती देने वाले दबंग दलित नेता चंद्रशेखर की पाटी ने कुंदरकी और मीरापुर दोनों जगह बसपा को पीछे धकेल दिया। 60 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली कुंदरकी में झाराझार वोट पड़े लेकिन मुस्लिम वोट ऐसे बंटे कि भाजपा प्रत्याशी को रिकॉर्ड जीत दिला दी। आखिर में गौरतलब…नतीजों को वन मैन शो बताने वाले एक अखाड़े की नजर में-एक छोटी राजधानी ने बड़ी राजधानी के एक हाईपॉवर ग्रुप को झटकेदार संदेश दे दिया है।

Courtsy amarujala.com
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