प्रयागराज। नगर की सुपरिचित नाट्य संस्था “आस्था समिति” द्वारा मोहन राकेश के लिखे नाटक “पैर तले ज़मीन” का मंचन रविवार को रवींद्रालय प्रेक्षागृह (जगत तारन गोल्डन जुबली स्कूल ) में मनोज गुप्ता के निर्देशन में किया गया।नाटक के माध्यम से समय और समाज की विसंगतियों को उजागर किया गया है।
आज अर्थ की लोलुपता ने व्यक्ति को कुछ करने की अंधी दौड़ में इस कदर व्यस्त कर दिया है कि भौतिक उपलब्धि से बचने की प्रक्रिया ही उसके दायित्व को विघटित कर उसे मानसिक रूप से तोड़ रही है। व्यक्ति को स्थिरता देने वाली पैर तले की ज़मीन ही खिसकती प्रतीत हो रही है। इस मानसिक विघटन ने समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित कर उनकी भिन्न भिन्न विशिष्टताओ को नष्ट कर दिया है। निम्न वर्ग से उच्च वर्ग तक आज सब टूटे, विक्षिप्त और धुरीहीन मानव हैं।विडंबना यह है कि अपनी इस स्थिति को प्रत्यक्ष रूप में स्वीकार करने की अपेक्षा अपने को आडंबर के एक लबादे में छिपाए रखते हैं और दूसरों को बेनकाब करने की कोशिश में लगे रहते हैं। हर कोई एक दूसरे की खोल से भली भांति परिचित हैं लेकिन दूसरे की खोल उतरते देखना चाहते हैं और अपनी खोल बचाएं रखना चाहते है l
नाटक की कथावस्तु के अनुसार टूरिस्ट क्लब ऑफ इंडिया ही इस का केंद्रीय घटना स्थल है जिसमें कुछ लोगों की प्रतिक्रिया पर नाटक आधारित है। क्लब में नियमित रूप से आने वाले लोग व्यक्तिगत जीवन में पराजित और टूटे हुए लोग है।अपने खालीपन और बिखरी जिंदगी को भुलाने के लिए वे ताश के पत्तों,मद्यपान और पाश्चात्य संगीत के शोर का सहारा लेते हैं। क्लब के बार में अब्दुल्ला और चौकीदार नियामत के समान ही थे,उच्च वर्गीय पात्र झुनझुनवाला पंडित और अय्यूब ,सलमान पैदाइशी बुजदिल व्यक्ति हैं।पुल टूटने पर क्लब में गिर जाने पर कुछ घंटों का समय इनके वास्तविक जीवन को बेनकाब कर जाता है। समाज में सुसंस्कृत कहलाने वाला व्यक्ति भी पैर तले की ज़मीन खिसकने पर मृत्यु का क्षण सामने देख कर एक दरिंदा बन सकता है।अय्यूब अपने वैवाहिक जीवन में असफल रहने की कुंठा से इस कदर ग्रस्त रहता है कि दो असहाय लड़कियों रीता और नीरा को अपना शिकार बनाता है।अय्यूब और सलमा के संबंधों पर छाई कब्रिस्तान की अनुभूति वर्तमान जीवन के एक दूसरे सत्य को उभारती है जहां व्यक्ति पारंपरिक संबंधों के खोखलेपन से निराश होकर आत्महंता प्रवृत्तियों की ओर बढ़ रहा है।
नित्य प्रति मद्यपान में मग्न रहनेवाला पंडित और झुनझुनवाला को भी आसन्न मृत्यु एक दूसरे रूप में सामने आती है।मृत्यु के भय को भूलने के लिए पंडित से लड़ने वाला झुनझुनवाला वस्तुतः समाज के पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधि है।नाटक के अंतिम दृश्य में इन दोनों पात्रों के वैयक्तिक जीवन की विसंगति उभर कर सामने आती है।
अब्दुल्ला की भूमिका में देव व्रत कुशवाहा, झुनझुनवाला की भूमिका में हर्षल राज,पंडित की भूमिका में गोविंद सिंह,रीता की भूमिका में दिव्या शुक्ल,नीरा की भूमिका में चाहत जायसवाल, अय्यूब की भूमिका में शरद कुशवाहा ने अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शकों को अत्यधिक प्रभावित किया।आर्यन नागर,शालिनी मिश्रा की भूमिकाएं भी सराहनीय रही। संगीत परिकल्पना प्रियांशु कुशवाहा,रूप सज्जा हामिद अंसारी, सेट निर्माण निखिलेश मौर्या,प्रकाशव्यवस्था अंकित कश्यप,प्रापर्टी व्यवस्था अक्सा शादाब ,मीडिया प्रभारी शाहबाज अहमद एवं आरिश जमील, कार्यक्रम संयोजक पंकज गौर थे।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. विभा मिश्रा (सहायक निदेशक लघु उद्योग एवं सूक्ष्म मंत्रालय भारत सरकार), वरिष्ठ रंगकर्मी व चित्रकार अजामिल व्यास, वरिष्ठ लोकनाट्यविद अतुल यदुवंशी, श्री बांके बिहारी पांडे ( प्रधानाचार्य रानी रेवती देवी इंटर कॉलेज) उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत संस्था के उपाध्यक्ष अनूप गुप्ता ने तथा धन्यवाद ज्ञापित संस्था के अध्यक्ष बृजराज तिवारी ने किया।
Anveshi India Bureau