इस दिन को आधुनिक उर्दू गजल के अग्रदूत और हिंदी के सबसे प्रभावशाली पूर्व-आधुनिक कवियों में से एक, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित फिराक गोरखपुरी को समर्पित किया गया। कहा गया कि फिराक अपनी गहरी आलोचनात्मक दृष्टि और संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। दिन के 11 बजे शुरुआत स्मिता अग्रवाल के गजल गायन से हुई।
महाकुंभ की सांस्कृतिक रवायतों से संगम के शहर को जोड़ने के लिए बज्म-ए-विरासत के मुक्ताकाशीय मंच पर शनिवार को शहर के कई अध्याय पलटे गए। उर्दू अदब में आकाश की तरह फैले शम्शुर्रहमान फारुकी के साहित्य संसार के पन्ने खुले, तो मीर की रुबाइयों पर भी बतकही का दौर चला। लोकनाथ, रानीमंडी की गलियों में फूली, समाई और ठहाकों में यादगार बनी स्मृतियों के झरोखे से झांकने-ताकने का खूब मौका मिला। आरडी बर्मन नाइट के तौर पर इस आखिरी शाम फिल्मी नग्मों और तरानों को समर्पित रही।
इस दिन को आधुनिक उर्दू गजल के अग्रदूत और हिंदी के सबसे प्रभावशाली पूर्व-आधुनिक कवियों में से एक, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित फिराक गोरखपुरी को समर्पित किया गया। कहा गया कि फिराक अपनी गहरी आलोचनात्मक दृष्टि और संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। दिन के 11 बजे शुरुआत स्मिता अग्रवाल के गजल गायन से हुई। स्मिता ने फिराक की गजल ‘नर्म फिजा की करवटें’ को सुरों में उतार कर खुशनुमा माहौल बना दिया। तबले पर संगत वासुदेव पांडेय और सिंथेसाइजर पर आकाश ने की।
इसके बाद फिराक गोरखपुरी के साहित्यिक योगदान पर चर्चा शुरू हुई। इसमें प्रो. असलम, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. अहमद महफूज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी, गीतकार यश मालवीय ने अपने अनुभवों के साथ किस्सागोई को साझा किया। प्रो. महफूज ने फिराक साहब की तुलना मिर्जा गालिब से की। कहा कि उनकी उर्दू शायरी, नज़्में, और रुबाइयां गजल की दुनिया में बेजोड़ हैं। इनके बाद प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी का कहना था कि फिराक अक्सर रातभर जागकर शायरी करते थे।
यश मालवीय बताते हैं कि एक बार लाल किले पर आयोजित मुशायरे में फिराक राष्ट्रपति की विशेष कुर्सी पर जाकर बैठ गए। जब तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद वहां पहुंचे, तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘आइए, आइए! तशरीफ रखिए। आप ही की तो एक तशरीफ है। अंत में प्रो. असलम ने भी फिराक से जुड़े संस्मरणों को साझा किया।
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