Thursday, March 13, 2025
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HomePrayagrajडॉ धर्मवीर भारती द्वारा कृत "नदी प्यासी थी" का भव्य नाट्य मंचन 

डॉ धर्मवीर भारती द्वारा कृत “नदी प्यासी थी” का भव्य नाट्य मंचन 

प्रयागराज।संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के सहयोग से संस्था आरंभ रंगमण्डल, प्रयागराज द्वारा नाटक – नदी प्यासी थी का मंचन शुक्रवार को रवींद्रालय प्रेक्षागृह प्रयागराज में संपन्न हुआ। इस नाटक के लेखक – डॉ धर्मवीर भारती हैं तथा निर्देशन संस्था “आरंभ की सचिव ऋतिका अवस्थी” द्वारा किया गया।

इस नाटय मंचन की कहानी नाटक के मुख्य पात्र राजेश के जीवन में घटित होने वाली कुछ विशेष घटनाओं के कारण उसकी मनोदशा के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें रह-रह कर जीवन के प्रति राजेश (जो कि पेशे से लेखक है), के मन में जीवन और मनुष्य की उत्पत्ति, संशय व प्रयोजन के प्रति प्रश्न खड़े होते रहते हैं और वह लगातार इसी ऊहापोह में रहता है कि हम इस दुनिया मे क्यूँ हैं?, मनुष्य योनि में जन्म लेने पर माया के चक्र से खुद को बचाना नामुमकिन सा क्यों है? और जो इस चक्र में रमता है वो हर भौतिक वस्तु की लालसा में एक मृगतृष्णा (mirage) को पकड़ने का दुस्साहस करते हुए स्वंय को ही चिल्ला-चिल्ला कर इस रेस का विजेता घोषित कर लेता है! जबकि उसके हाथ लगता कुछ भी नहीं है। इस जीवन को जीने के लिए एक भ्रम का आवरण ज़रूरी अवयव है तथा इसके बिना आप यहाँ मिसफिट और बैचेन महसूस करने लगते है।

ये कहानी शुरू होती है शंकर एवं शीला के घर से जो एक दंपति है। साथ ही शंकर और राजेश कॉलेज के दिनों के दोस्त है, शंकर एक समान्य व्यक्ति है जो अब दुनियादारी में पूरी तरह से रम चुका है तथा उसके लिए राजेश के थॉट प्रोसेस को पकड़ पाना नामुमकिन सा है। इस नाटक के केन्द्रीय पात्रों में राजेश के साथ-साथ पद्मा की भूमिका भी पूरे नाटक में एक बड़ी कड़ी की तरह है, जिसके द्वारा हम स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की जटिलता को समझने का प्रयास करते है। वहीं कहानी का तीसरा प्रमुख पात्र “डॉ कृष्णा” है जो कि पद्मा के होने वाले पति हैं और पेशे से डॉक्टर है।

’पद्मा’ अपने निजी विरोधाभासों के बावजूद भी लेखकों के साथ एक प्रकार का सॉफ्ट कार्नर रखती है , वो रचना और रचनकार की जो फांक है उसे भी बखूबी जानती है! ‘कृष्णा’ को कविताओं की कोई खास समझ नहीं है लेकिन ‘पद्मा’ के प्रति उसका एक ख़ास लगाव है और इस लगाव की वजह है पद्मा की कविताएँ और उसकी बौधिक बातें, जो डॉक्टरी जैसे नीरस पैशे में कभी संभव ही नहीं है। नाटक के अंत में गहरी निराशा के भँवर में फसा “राजेश” जो कि मृत्यु को गले लगाने के लिए तत्पर था वो वापस लौटकर जीवन को गले लगाता है और सकारात्मकता से जीवन को गले लगाने के लिए तैयार है। मंच पर पात्रों की भूमिका श्रिया सिंह, शुभेन्द्रू कुमार, यश अनुज मिश्रा, अमृतेष श्रीवास्तव और शालिनी मिश्रा ने निभाई एवं मंच परे वस्त्र-विन्यास आंकित तिवारी द्वारा,रूप-सज्जा हर्षिता निषाद द्वारा, मंच व्यवस्था नीलकांत तिवारी द्वारा, मंच परिकल्पना अर्पिता अग्रवाल, ऋतिक श्रीवास्तव एवं हर्षल राज द्वारा, संचालन जतिन कुमार द्वारा एवं संगीत संचालन शाश्वत अरोरा द्वारा और परिकल्पना एवं निर्देशन ऋतिका अवस्थी जी द्वारा किया गया ।

 

 

Anveshi India Bureau

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