Monday, September 15, 2025
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एकता की मार्मिक नाट्य प्रस्तुति “बुढ़िया का चश्मा”

प्रयागराज।सांस्कृतिक संस्था “एकता” द्वारा “बुढ़िया का चश्मा” नाटक का मंचन शनिवार को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में किया गया। बुढ़िया का चश्मा डॉ मोहनलाल गुप्ता के लघु नाटक से प्रेरित एक मार्मिक प्रस्तुति है।इसका पुनर्लेखन,परिकल्पना एवं निर्देशन युवा रंगकर्मी निखिलेश कुमार मौर्य ने किया।

यह नाटक भ्रष्ट राजनीति के कारण मिटती संवेदनाएं और बढ़ती आकांक्षाओं पर करारा व्यंग्य है।नाटक में आज़ादी के सपनों और वर्तमान की सच्चाइयों के बीच अंतर को दिखाने का प्रयास किया गया ।कहानी एक युवा (आज़ाद भारत माता की प्रतीक)से शुरू होती है।जो 1947 में न्याय, प्रेम और समानता का सपना देखती है।साल दर साल गुजरते जाते है।दशकों बाद वही बुढ़िया थकी – झुकी मोटा चश्मा पहने अपने अधूरे सपनों का बोझ उठाए दिखाई देती हैं।वह देखती है धर्म के नाम पर पापाचार का बोलबाला है। शिक्षा के नाम पर दुकानें खुल गई हैं।न्यायालयों में मुकदमों के ढेर लग गये हैं।साक्ष्यों के अभाव में बड़े बड़े अपराधी छूट रहे हैं और आम आदमी न्याय के लिये दर दर भटक रहा है।चिकित्सा के नाम पर मरीजों का खून चूसा जा रहा है।

सूत्रधार दर्शकों को नाटक से जोड़ता है और सवाल करता है कि क्या आज़ादी के वे सपने पूरे हुए ? प्रभाकर बाबू एक आदर्शवादी शिक्षक हैं।वह जब बुढ़िया का चश्मा पहनते हैं तो उन्हें समाज की असली सूरत दिखाई पड़ती है।जहां इंसान जानवरों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।नाटक में नेता जी (राजनीति), धर्माचार्य (धार्मिक पाखंड), न्यायादेव ( बिके न्याय), सेठ करमचंद ( मुनाफाखोर पूंजीपति), तिकड़मचंद और धारदार सिंह (दो विपरीत वकील), रामदीन, कन्हैया और आम जनता जैसे प्रतीकात्मक पात्र हैं।यह चश्मा एक आईना है जो सच देखने का साहस देता है और प्रभाकर बाबू को भीतर से बदल देता है। अंत में बुढ़िया और प्रभाकर बाबू सवाल करते हैं कि क्या यह वही आज़ादी है जिसके लिए उसने कुर्बानी दी थी ? नाटक दर्शकों को भी यह चश्मा पहनकर सच देखने के लिये आमंत्रित करता है।

युवा बुढ़िया,रामदीन की बेटी की भूमिका में( शीरीन मालवीय), सूत्रधार,रामदीन की भूमिका में (कुमार अभिनव), बूढ़ी माता की भूमिका में (डॉ. सुनीता थापा), कन्हैया उर्फ लंगड़ा की भूमिका में (अभिषेक गुप्ता), नेता जी की भूमिका में (आकाश अग्रवाल “चर्चित”), प्रेमी एवं धारदार की भूमिका में (आकाश मौर्य), प्रेमिका एवं बुधिया माई की भूमिका में (शालिनी मिश्रा), प्रभाकर बाबू की भूमिका में (हर्ष श्रीवास्तव), न्यायादेव की भूमिका में (दिवांकर रॉय), सेविका की भूमिका में (दिव्यांशी अग्रहरि), पुलिस वाला की भूमिका में ( सत्यम मिश्रा) ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को अत्यंत प्रभावित किया।संगीत संयोजन प्रशांत वर्मा, रूप सज्जा मोहम्मद हमीद, मोहम्मद इरशाद, मंच निर्माण आरिश जमील,उत्कर्ष गुप्ता,अंकित पाण्डेय, वस्त्र विन्यास डॉ. सुनीता थापा,गरिमा बनर्जी, पोस्टर/कार्ड डिजाइन शहबाज अहमद, मीडिया प्रभारी मनोज कुमार गुप्ता, हस्त सामग्री नबीला, पूर्वाभ्यास प्रबंधक उत्तम कुमार बनर्जी, प्रस्तुति मार्गदर्शन सुदीपा मित्रा का था। नाटक का पुनर्लेखन/ परिकल्पना एवं निर्देशन निखिलेश कुमार मौर्य का था।आयोजन के मुख्य अतिथि श्री सुदेश शर्मा (निदेशक, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र) थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री अनिल रस्तोगी ( वरिष्ठ रंगकर्मी, नाट्य निर्देशक, दूरदर्शन एवं फिल्म अभिनेता)ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. विभा मिश्रा ( सहायक निदेशक, लघु उद्योग एवं सूक्ष्म मंत्रालय, भारत सरकार), श्री बांके बिहारी पाण्डेय ( प्रधानाचार्य रानी रेवती देवी सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कालेज प्रयागराज), श्री अतुल यदुवंशी ( वरिष्ठ लोक नाट्यविद) शामिल थे।अतिथियों का स्वागत संस्था के केंद्रीय महासचिव जमील अहमद ने किया। कार्यक्रम का संचालन कृष्ण कुमार मौर्य ने किया।

 

Anveshi India Bureau

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