Monday, September 15, 2025
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Gender Change : सोशल मीडिया से बढ़ रही जेंडर चेंज की प्रवृत्ति, अस्पताल में काउंसलिंग के लिए पहुंच रहे पीड़ित

किशोरों में जेंडर चेंज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग अब मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में भी हो रही है।

किशोरों में जेंडर चेंज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग अब मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में भी हो रही है। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि जेंडर बदलने की प्रवृत्ति किशोर और किशोरियों में अधिक देखने को मिलती है। वे इससे संबंधित तमाम प्रकार की जानकारियां सोशल मीडिया से जुटाते हैं। जेंडर आइडेंटिडी डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को खुद से घृणा होने लगती है। सामान्य रूप से लड़का और लड़की का एक दूसरे के प्रति आकर्षण होता है मगर इस प्रकार के लोग खुद जेंडर बदलना चाहते हैं। कई परिजन ऐसे लोगों को लेकर काउंसलिंग कराने भी आए हैं, जो जेंडर परिवर्तन की बात न मानने पर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।

केस नंबर 1-

सलवार सूट पहनकर रहना चाहता हूं

कौशाम्बी निवासी 16 वर्षीय एक किशोर को परिजन कॉल्विन अस्पताल काउंसलिंग कराने के लिए लेकर आए। किशोर ने बताया कि वह पिछले तीन साल से खुद को लड़की की तरह महसूस करता है। उसने सोशल मीडिया पर जेंडर चेंज करने की कई जानकारियां भी इकट्ठा की है। उसने बताया कि मैं दिन में सलवार शूट पहनकर रहना चाहता हूं मगर घर वालों से डर लगता है।

केस नंबर 2-

लड़की बोली- मैं लड़का बनना चाहता हूं

सिविल लाइंस निवासी एक 15 वर्षीय लड़की को लगता था कि वह लड़का है। उसे हमेशा लड़कों की तरह रहना पसंद था। शुरुआत में परिजनों को यह सामान्य बात लगी। मगर बाद में उसकी हरकतें घर वालों को परेशान करने लगी। उसने लड़कियों के स्कूल में दाखिला लेने से मना कर दिया। अपनी फ्राक व सलवार सूट काे भी आग लगा दी। ऐसे में जब लड़की की काउंसलिंग शुरू हुई तो उसने कहा कि उसे लड़कों में कोई इंट्रेस्ट नहीं है, क्योंकि वह खुद एक लड़का है। फिलहाल लड़की की काउंसलिंग चल रही है।

काउंसलिंग से 98 फीसदी लोग सामान्य जीवन जीने लगते हैं

सोशल मीडिया से ज्यादा जुड़े रहने की वजह से इस प्रकार के मामले बढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा किशोर और किशोरियों में जेंडर परिवर्तन को लेकर उत्सुकता नजर आती है। हालांकि काउंसलिंग चलने के बाद लगभग 98 फीसदी लोग सामान्य जीवन जीने लगते हैं। परिजनों को चाहिए कि वह अपने बच्चों के हाव-भाव पर नजर रखें। सोशल मीडिया में किस साइट पर वह ज्यादा समय बिता रहें हैं, इसका भी ख्याल रखें। -पंकज कोटार्य, नैदानिक मनोवैज्ञानिक। 

 

 

 

Courtsy amarujala
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