इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रूण परीक्षण मामले की जांच करने के लिए पुलिस अधिकृत नहीं है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) एक पूर्ण संहिता है। इसमें जांच, तलाशी, जब्ती और शिकायत दर्ज करने से संबंधित सभी प्रावधान शामिल हैं। इसके अनुसार केवल सक्षम प्राधिकारी ही कार्यवाही कर सकता है। कोर्ट ने यह टिप्पणी कर बुलंदशहर के डॉक्टर के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने डॉ.बृजपाल सिंह की अर्जी पर दिया। बुलंदशहर के थाना कोतवाली नगर में खुर्जा के तहसीलदार ने 2017 में एक रिपोर्ट पेश कर आरोप लगाया कि शोभाराम अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के भ्रूण परीक्षण किया जा रहा है। इस पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर डॉ.बृजपाल के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इसके खिलाफ डॉ.बृजपाल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याची के वकील ने दलील दी कि पुलिस की ओर से पीसीपीएनडीटी अधिनियम के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। इसमें केवल मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का संज्ञान सक्षम प्राधिकारी की शिकायत पर ही लिया सकता है। पुलिस को जांच व आरोप पत्र दाखिल करने का अधिकार नहीं है। लिहाजा, कोर्ट ने डॉक्टर के खिलाफ दर्ज मुकदमे की कार्यवाही रद्द कर दी।
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