इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विदेशी अधिनियम के तहत दोषसिद्ध महिला की दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट के प्रत्यर्पण को लेकर “नियमानुसार कार्रवाई” करने का निर्देश देने के आदेश को कोई अनिवार्य (मैंडेटरी) आदेश नहीं माना जा सकता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विदेशी अधिनियम के तहत दोषसिद्ध महिला की दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट के प्रत्यर्पण को लेकर “नियमानुसार कार्रवाई” करने का निर्देश देने के आदेश को कोई अनिवार्य (मैंडेटरी) आदेश नहीं माना जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार-एक्स की एकल पीठ ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने वाली महिला की याचिका पर दिया।
कोर्ट ने कहा कि जब अदालत किसी कार्रवाई को “नियमानुसार” करने की बात कहती है, तो इसका सीधा अर्थ यह होता है कि सक्षम प्राधिकारी को लागू कानून के अनुसार निर्णय लेने के लिए छोड़ा गया है। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अदालत ने दोषसिद्ध व्यक्ति को जबरन देश से बाहर भेजने का आदेश दे दिया है।
याची महिला को महाराजगंज के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट ) ने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14-ए के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल और 10 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई थी। साथ ही ट्रायल कोर्ट ने अपने निर्णय में पुलिस अधीक्षक महाराज को निर्देश दिया था कि सजा की अवधि पूरी होने के बाद अभियुक्त को उसके देश बर्मा (म्यांमार) प्रत्यर्पित किए जाने की कार्रवाई “नियमानुसार” की जाए।
इसी टिप्पणी को चुनौती देते हुए याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसका कहना था कि ट्रायल कोर्ट को प्रत्यर्पण का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है। खासकर तब जब उसके पास ऐसे वैध पहचान पत्र मौजूद हैं, जो उसे भारतीय नागरिक साबित करते हैं। इसलिए उसे म्यांमार भेजने की बात कानूनन गलत है।
वहीं, राज्य सरकार और भारत संघ की ओर से दलील दी गई कि ट्रायल कोर्ट ने कोई बाध्यकारी आदेश नहीं दिया है। अदालत ने केवल इतना कहा है कि यदि कानून और नियम इसकी अनुमति दें, तो सक्षम अधिकारी आगे की कार्रवाई करें।
वहीं, राज्य सरकार और भारत संघ की ओर से दलील दी गई कि ट्रायल कोर्ट ने कोई बाध्यकारी आदेश नहीं दिया है। अदालत ने केवल इतना कहा है कि यदि कानून और नियम इसकी अनुमति दें, तो सक्षम अधिकारी आगे की कार्रवाई करें।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश पर कहा कि उसमें कहीं भी प्रत्यर्पण के लिए स्पष्ट और अनिवार्य निर्देश नहीं दिए गए हैं। “नियमानुसार” शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि अंतिम निर्णय संबंधित प्राधिकरणों को कानून के तहत लेना है।
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