इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि थानों, गोदामों और डिपो में जब्त वाहन कब तक सड़ते रहेंगे। सजा अपराधी को दी जाती है, वाहन को नहीं। ये केवल अपराध के सुबूत ही नहीं, राष्ट्रीय विकास के पहिये भी हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि थानों, गोदामों और डिपो में जब्त वाहन कब तक सड़ते रहेंगे। सजा अपराधी को दी जाती है, वाहन को नहीं। ये केवल अपराध के सुबूत ही नहीं, राष्ट्रीय विकास के पहिये भी हैं। इनके निस्तारण में देरी केवल प्रशासनिक विफलता ही नहीं, बल्कि सांविधानिक अधिकारों का हनन है। इस तल्ख टिप्पणी संग कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि एक उच्चस्तरीय समन्वय समिति का गठन कर छह महीने में स्पष्ट और प्रभावी नीति बनाएं, ताकि इन जब्त वाहनों का निस्तारण किया जा सके।
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने अलीगढ़ निवासी बिरेंद्र सिंह, मुकेश कुमार व प्रावीन सिंह चौहान की ओर दाखिल याचिका पर दिया। कोर्ट ने कहा कि चाहे वाहन किसी भी अधिनियम के तहत जब्त किए गए हों, उनकी उपयोगिता देश के विकास में महत्वपूर्ण है। वाहन रोड पर चलते हैं, टैक्स भरते हैं और रोजगार उपलब्ध कराते हैं। देश के विकास में योगदान देते हैं। वाहनों को जब्त कर कबाड़ बनाना सीधा-सीधा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी है। जब्त वाहन वैध तरीके से वाहन स्वामियों को सुपुर्द किया जाए तो वाहन से ईंधन कर, टोल, जीएसटी और रोजगार में वृद्धि होगी।
Courtsy amarujala