इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम-2015 एक आत्मनिर्भर कानून है। इसकी धारा-10 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी विधि-विरुद्ध बालक को न तो जेल में रखा जा सकता है और न ही हवालात में।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम-2015 एक आत्मनिर्भर कानून है। इसकी धारा-10 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी विधि-विरुद्ध बालक को न तो जेल में रखा जा सकता है और न ही हवालात में। यदि उम्र को लेकर विवाद है और आयु निर्धारण का दावा लंबित है तो भी आरोपी को 21 वर्ष की उम्र तक जेल में नहीं रखा जा सकता है। ऐसे में सुरक्षित गृह में रखा जाना चाहिए।
इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने याची को जेल से तत्काल रिहा कर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। मामला प्रयागराज के थरवई थाना क्षेत्र का है। 2017 में नाबालिग के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस ने उसे न्यायिक हिरासत में भेजा था। मुकदमे के दौरान उसने स्कूल अभिलेखों के आधार पर नाबालिग होने का दावा किया।
बताया कि उसका जन्म 2002 में हुआ। घटना के दिन वह नाबालिग था लेकिन निचली अदालत ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9(2) के तहत आवश्यक जांच किए बिना एक पत्र बोर्ड को भेज दिया। हालांकि, उसके आधार पर आरोपी को किशोर घोषित कर दिया गया, फिर भी वह केंद्रीय कारागार नैनी में ही बंद रहा। इसे अवैध हिरासत बताते हुए एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोपी की रिहाई के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने कानून का उल्लंघन किया और आयु निर्धारण प्रक्रिया पूरी किए बिना आरोपी को जेल भेजा। ऐसे में यह न केवल अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि बाल अपचारी के मौलिक अधिकारों का भी हनन है।



