Friday, October 18, 2024
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IIT Kanpur: कैंपस में 18 साल से चल रहा आत्महत्या का सिलसिला, प्रोफेसर और स्टाफ के लोग भी लगा रहे मौत को गले

आईआईटी कानपुर भारत का एक सबसे प्रतिष्ठित संस्थान है। यहां प्रवेश पाने के लिए हर साल देश के लाखों इच्छुक छात्र संघर्ष करते हैं। अनगिनत भावी छात्रों के सपनों का घरोंदा होने के साथ ही आईआईटी कानपुर बेहतर एक्सपोजर हासिल करने और तकनीकी कौशल बढ़ाने के लिए ढेर सारे अवसर प्रदान करता है। ऐसे में यदि यहां पढ़ने वाला कोई छात्र या फिर छात्रा आत्महत्या करे तो यह हैरान करने वाली बात है। यही नहीं यहां के प्रोफेसर और स्टाफ में से भी कई लोगों मौत को गले लग चुके हैं। वहीं, अब छात्रा प्रगति सुसाइड केस के बाद आईआईटी कानपुर चर्चा में है।

दरअसल, पीएचडी की छात्रा प्रगति ने किसी मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या कर ली। इसकी जानकारी न तो संस्थान के जिम्मेदारों को है और न ही परिजन ही कुछ बता पा रहे हैं। होने वाली वैज्ञानिक की मौत पर संस्थान की ओर से सिर्फ एक सांत्वना पत्र जारी कर इसे पुलिस जांच का विषय बताया गया है। प्रगति को प्रतिमाह 42 हजार रुपये फैलोशिप के भी मिलते थे।

‘मेरी मौत के लिए किसी को दोष न दिया जाए’

छात्रा अपने पीछे पांच पेज का सुसाइड नोट छोड़कर गई है। पांच पेज के सुसाइड नोट में दो पेज खाली हैं। एक पेज में केवल इतना लिखा है, ‘मेरी मौत के लिए किसी को दोष न दिया जाए।’ एक पेज में केवल लाइन खिंची हुई है। दूसरे पेज में परिवार वालों के नाम का जिक्र करते हैं लिखा, ‘ऐसा नहीं है कि मैं कुछ कर नहीं सकती। पीएचडी पूरी करके आगे और पढ़ाई के साथ काम भी कर सकती हूं। हां, एक्सट्रा कुछ नहीं कर सकी।’

एक लड़के का नाम और नंबर भी लिखा

पुलिस अधिकारी के मुताबिक, सुसाइड नोट से लग रहा है कि प्रगति अकेलापन महसूस कर रही थी, लेकिन वजह क्या हो सकती है यह तो उसके परिवार के लोग ही जान सकते हैं। बताया जा रहा है कि सुसाइड नोट में किसी लड़के का नाम और मोबाइल नंबर भी लिखा है। इस बारे में पुलिस जांच कर रही है। वहीं, प्रगति ने अपने दोस्तों के लिए लिखा है कि आप लोगों ने मुझे बहुत कोऑपरेट किया, इसके लिए थैंक्स…। पुलिस का कहना है कि नोट में किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है। आवश्यकता पड़ने पर सुसाइड नोट की हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से जांच भी कराई जाएगी।

आत्महत्या करने वाली पहली छात्रा नहीं है प्रगति

देखा जाए तो आईआईटी परिसर में आत्महत्या करने वाली प्रगति पहली छात्रा नही हैं। कैंपस में सुसाइड करने का सिलसिला 18 सालों से चला आ रहा है। जान देने वालों में छात्र ही नहीं प्रोफेसर व स्टाफ के भी लोग रहे हैं।

एक माह में तीन लोगों ने की थी आत्महत्या

आईआईटी कानपुर में तनाव के चलते दिसंबर-23 से जनवरी-24 के बीच एक माह में तीन लोगों ने आत्महत्या की है। इसमें एक प्रोजेक्ट मैनेजर और दो छात्र शामिल रहे। 19 दिसंबर 2023 को शोध सहायक स्टॉफ डॉ. पल्लवी चिल्का तो 10 जनवरी 2024 को एमटेक छात्र विकास मीणा और 18 जनवरी 2024 को पीएचडी छात्रा प्रियंका जायसवाल ने फंदा लगाकर आत्महत्या की थी।

कैंपस में यह भी कर चुकें हैं आत्महत्या

7 सितंबर 2022– वाराणसी निवासी पीएचडी छात्र प्रशांत सिंह ने फंदा लगाकर आत्महत्या की।
12 मई 2021– संस्थान के असिस्टेंट रजिस्ट्रार सुरजीत दास ने भी फंदा लगाया था।
09 जुलाई 2020– आईआईटी के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रमोद सुब्रमण्यन ने फंदा लगाकर सुसाइड किया।
30 दिसंबर 2019– संस्थान में सिक्योरिटी गार्ड आलोक श्रीवास्तव ने भी फंदा लगाकर जान दी।
19 अप्रैल 2018– फिरोजाबाद निवासी पीएचडी छात्र भीम सिंह ने फंदा लगाकर आत्महत्या की।
03 जनवरी 2009– एमटेक छात्र जी सुमन ने आत्महत्या की।
30 मई 2008– छात्र टोया चटर्जी ने फंदा लगाकर जान दी।
12 अप्रैल 2008– छात्र प्रशांत कुमार कुरील ने फंदा लगाकर आत्महत्या की।
25 अप्रैल 2007– जे भारद्वाज ने ट्रेन से कटकर जान दी।
03 मई 2006– शैलेश कुमार शर्मा ने फंदा लगाकर जान दी।

 

 

Courtsy amarujala.com

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