प्रयागराज। नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय में भूगोल, दर्शन एवं योग, सामाजिक शास्त्र तथा शिक्षक शिक्षा शास्त्र विभागों के संयुक्त तत्वावधान में “अग्निहोत्र एवं होमा उपचार के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय आयाम” विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम हाइब्रिड माध्यम से आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, प्रसिद्ध जर्मन होमा-चिकित्साशास्त्री डॉ. उलरिच बर्क ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण तभी संभव है जब लोग स्वयं संकल्प लेकर इसके प्रति जागरूक हों। उन्होंने यह भी बताया कि हवन किस पात्र में किया जा रहा है, इसका पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

उद्घाटन सत्र में प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री ने कहा कि दैव विपाश्रय के बिना हवन पूर्ण नहीं होता और इसकी उपयोगिता हमारे प्राचीन ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है।
विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलाधिपति श्री जे.एन. मिश्र ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के उपाय हमारे धर्मग्रंथों में स्पष्ट रूप से निहित हैं और हमें उन्हें वैज्ञानिक दृष्टि से अपनाने की आवश्यकता है।
कुलपति प्रो. रोहित रमेश ने पर्यावरणीय परिवर्तन, कृषि पर उसके प्रभाव और मानवीय मूल्यों पर अपने विचार व्यक्त किए।
हायांग विश्वविद्यालय के रसायन इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. डी.के. मिश्रा ने कहा कि “पृथ्वी हमें आने वाली पीढ़ियों से उधार में मिली है, इसलिए इसे सुरक्षित और स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है।”
तकनीकी सत्र में प्रो. बृजेंद्र मिश्रा, डॉ. आशीष शिवम, डॉ. आदि नाथ एवं अन्य विशेषज्ञों ने अग्निहोत्र और होमा उपचार के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. अविनाश पांडे एवं डॉ. राघवेन्द्र मालवीय द्वारा लिखित पुस्तक “भारतीय ज्ञान परंपरा” का विमोचन भी किया गया।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. संजय भारती तथा आयोजन सचिव डॉ. संतेश्वर मिश्रा रहे।
स्वागत भाषण डॉ. राजेश तिवारी ने दिया और कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ. हिमांशु टण्डन ने प्रस्तुत की।
संचालन डॉ. मीता रतावा तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव एस.एस. मिश्रा द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षकगण, डीन, शोधार्थी एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।
Anveshi India Bureau



