Tuesday, July 8, 2025
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Mahakumbh: निर्वाणी अखाड़े में साधुओं के हैं चार विभाग… तीन साल की सेवा के बाद मिलती है मुरेटिया की पदवी

Mahakumbh 2025: निर्वाणी अखाड़े में साधुओं के चार विभाग हैं। तीन साल की सेवा के बाद मुरेटिया की पदवी मिलती है। वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों में निर्वाणी अनि अखाड़ा प्रमुख है।

वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों में निर्वाणी अनि अखाड़ा संस्कृति-भक्ति की रक्षा के केंद्र के रूप में सबसे शक्तिशाली माना जाता रहा है। चाहें संतों की सुरक्षा का मसला रहा हो या फिर हिंदू देवी-देवताओं के मठ-मंदिरों के संरक्षण का, निर्वाणी अनि अखाड़ा हमेशा सनातन संस्कृति की आवाज के रूप में सुर्खियों में रहा है।

यह पहला अखाड़ा है, जहां साधु चार विभागों में काम करते हैं। अयोध्या में हनुमानगढ़ी पर अधिकार होने की वजह से यह सबसे ताकतवर अखाड़ा माना जाता है। इसके श्रीमहंत धर्मदास राम मंदिर मामले में पक्षकार रहे हैं।

वह बताते हैं कि निर्वाणी अनि अखाड़े में साधुओं के चार विभाग हैं। इनमें हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया और सागरिया प्रमुख हैं। महंत धर्मदास बताते हैं कि इस अखाड़े में महंत की पदवी पाने के लिए नए संन्यासियों को लंबे समय तक गुरु की सेवा करनी पड़ती है।
गुरु के प्रसन्न होने पर श्रीपंच की राय से महंत की गद्दी मिलती है।  वैष्णव अखाड़े की परंपरा के अनुसार जब भी कोई नया साधु संन्यास ग्रहण करता है तो तीन साल की सेवा के बाद उसे ‘मुरेटिया’ की पदवी दी जाती है।

नया उदासीन अखाड़े में सात सौ डेरे, पंच प्रेसीडेंट सर्वोपरि
इसके अलावा, पंचायती नया उदासीन अखाड़ा देव भाषा संस्कृत, संस्कृति, ज्ञान, भक्ति और नैतिकता की अलख जगाने वाला है। श्वेत वस्त्रधारी संतों वाले इस अखाड़े में पंच प्रेसीडेंट ही सर्वोपरि होते हैं। बिना इनके यहां कोई फैसला नहीं होता। इस अखाड़े की स्थापना हरिद्वार के कनखल में राजघाट पर 1902 में हुई थी।उदासी परंपरा के तीन प्रमुख अखाड़ों में पंचायती अखाड़ा नया उदासीन ज्ञान-भक्ति के साथ देव भाषा के प्रचार के लिए लंबे समय से जुटा हुआ है।

देश भर में सात सौ से अधिक इसके डेरे हैं। इनमें 1.50 लाख से अधिक संत जुड़े हुए हैं। संस्कृत महाविद्यालयों के साथ धर्म प्रचार केंद्रों का संचालन भी यह अखाड़ा कर रहा है।अखाड़े के सचिव जगतार मुनि बताते हैं कि नैतिक मूल्यों के संरक्षण के साथ ही राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने के लिए लगातार काम हो रहा है। अखाड़े की स्थापना बनखंडी निर्वाणदेव जी ने की थी।

महाकुंभ की पेशवाई हो, शाही स्नान या फिर कोई और शुभ कार्य, सबसे आगे गुरु के प्रतीक तौर पर संगत साहिब की सवारी चलती है।इसके पीछे संतों का कारवां चलता है। जगतार मुनि बताते हैं कि उदासीन संप्रदाय के संत पंचतत्व की पूजा करते हैं। उदासीन सिख साधुओं का संप्रदाय है। श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन निर्वाण के मौजूदा पंच प्रेसिडेंट श्रीमहंत धूनी दास हैं।दक्षिण पंगत के मुखिया महंत भगत राम पर महाकुंभ की जिम्मेदारी है।
उत्तर पंगत के मुखिया महंत सुरजीत मुनि हैं तो पूर्व पंगत के महंत आकाश मुनि और पश्चिम पंगत के मुखिया महंत मंगल दास हैं। अखाड़े के उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि में डेरे और आश्रम हैं।आश्रमों की ओर से स्कूल, कॉलेजों का संचालन हो रहा है। साथ ही, संस्कृत महाविद्यालयों के जरिये वेद प्रचार भी किया जा रहा है।
Courtsy amarujala.com
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