प्रयागराज महाकुंभ के दौरान वैष्णवों के सबसे बड़े दिगंबर अनी अखाड़े ने अपनी करीब साढ़े पांच सौ साल पुरानी परंपरा छोड़कर लोकतांत्रिक ढांचे की ओर कदम बढ़ा दिया।
प्रयागराज महाकुंभ के दौरान वैष्णवों के सबसे बड़े दिगंबर अनी अखाड़े ने अपनी करीब साढ़े पांच सौ साल पुरानी परंपरा छोड़कर लोकतांत्रिक ढांचे की ओर कदम बढ़ा दिया। अन्य दोनों अनी अखाड़े की तरह दिगंबर अनी अखाड़े में भी अब न सिर्फ सभी अहम पदों के चुनाव होगा बल्कि उनका कार्यकाल भी बारह साल के लिए तय कर दिया। अभी तक अखाड़े के पदाधिकारियों का कोई कार्यकाल तय नहीं रहता था। अखाड़े के अध्यक्ष, महामंत्री समेत अन्य पदाधिकारी आजीवन इस पद पर बने रहते थे। महाकुंभ के दौरान नए पदाधिकारी भी चुन लिए गए।
अखिल भारतीय श्रीपंच दिगंबर अनी अखाड़े को छोड़कर अनी निर्वाणी एवं निर्माोही अखाड़े में व्यवस्था संचालन के लिए हर बारह साल में पदाधिकारियों का चुनाव होता है। लेकिन, दिगंबर अनी अखाड़ा में यह व्यवस्था लागू नहीं थी। अखाड़े के पदाधिकारी आजीवन पद पर बने रहते थे। उनकी मृत्यु अथवा किसी अन्य वजह से स्थान खाली हो जाने पर ही नए सदस्य को कार्यकारिणी में जगह मिलती थी। पिछले करीब साढ़े पांच सौ साल से अखाड़े में यही परंपरा काम कर रही थी। प्रयाग महाकुंभ के दौरान दिगंबर अखाड़े ने अपनी परंपरा बदलने का फैसला किया।
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