महाकुंभ के प्रथम स्नान पर्व पौष पूर्णिमा पर शाम को चार बजे तक करीब एक करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में डुबकी लगा चुके हैं। मेला प्रशासन के दावों की मानें तो देर शाम तक यह आंकड़ा सवा करोड़ के पार हो सकता है।
अस तीरथपति देखि सुहावा/सुख सागर रघुबर सुखु पावा/को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ/कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ… तुलसी की यह चौपाइयां सोमवार को पौैष पूर्णिमा पर गंगा, यमुना, अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में शुभ और सर्व मंगल के प्रतीक महाकुंभ की प्रथम डुबकी के साथ संगम पर साकार हुईं। जैसे समुद्र में मिलने के लिए नदियां आतुर रहती हैं, वैसे ही आस्था, भक्ति, विश्वास का जन ज्वार आधी रात को ही प्रथम डुबकी के लिए उमड़ पड़ा।
पौ फटने से पहले संगम जाने वाली सड़कों पर भक्ति की लहरें उफनाने लगीं और रास्तों पर लयबद्ध भीड़ का रेला चलने लगा। मेला प्रशासन ने शाम चार बजे तक दो करोड़ श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने का दावा किया। इसी के साथ विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजन के रूप में दिव्य, भव्य, सुरक्षित महाकुंभ का शुभारंभ हो गया।
पौष पूर्णिमा स्नान स्नान पर्व के साथ संगम पर डुबकी के लिए कड़ाके की ठंड में कोई छिवकी रेलवे स्टेशन से आठ किमी पैदल दूरी तय कर आया तो कोई फाफामऊ स्थित आजाद सेतु से पैदल लपकते हुए परिवारीजनों, बच्चों को गमछे में जोड़कर खींचते हुए बढ़ता नजर आया। कुछ लोग भटकने से बचने के लिए अपने समूह के साथ अपना अलग झंडा-डंडा भी लेकर चल रहे थे। मध्यप्रदेश के सागर से आईं शिक्षिका ममता भट्ट को पैदल आठ किमी से अधिक दूरी तय करनी पड़ी।



