उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र में शनिवार को माध्यम संस्थान प्रयागराज और अनुकृति रंगमंडल कानपुर द्वारा नाटक कर्ण गाथा और रॉग नंबर का बेहतरीन मंचन किया गया। नाटक कर्ण गाथा कुंती की विवशता और कर्ण विडंबना की गाथा है। इस नाटक के लेखक आसिफ अली और निर्देशक डाॅ ओमेन्द्र कुमार रहे।
बालक कर्ण, अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिला और उन्होंने उसका अपने पुत्र की भांति लालन पालन किया। बालक कर्ण गुरू द्रोण से धनुर्विद्या सिखाने का निवेदन करता है मगर वह मना कर करते हैं। समय का चक्र अपनी गति से बढ़ता है… कर्ण अब बड़ा हो चुका है। उसकी वृषाली से भेंट होती है। गुरु द्रोण की शस्त्र परीक्षा में कर्ण अर्जुन को ललकारता है तो कृपाचार्य उसे सूर्यास्त का हवाला देकर अर्जुन को विजेता घोषित कर देते हैं। द्रोपदी स्वयंवर में एक बार फिर कर्ण को सूत पुत्र होने का अपमान सहना पड़ता है। कर्ण का वृषाली से विवाह हो चुका है। एक दिन ब्राह्मण वेश में इंद्र आकर कर्ण से उसका कवच-कुंडल दान में ले जाते हैं। कृष्ण कर्ण को बताते हैं कि वह सूत नहीं सूर्य पुत्र है कुंती का ज्येष्ठ पुत्र। अंततः युद्ध के दौरान कींचड़ में फसे रथ का पहिया निकालते समय अर्जुन के बाण से कर्ण की मृत्यु हो जाती है।
नाटक में आकाश शर्मा, महेश जायसवाल, जौली घोष, महेन्द्र धुरिया, दीपक राही, आरती शुक्ला, दीपिका सिंह, अजीत, सुमित गुप्ता, कावेरी सिंह, अन्नपूर्णा सिंह, कमल गौड़, सम्राट यादव, सुचिता दुबे, जिज्ञासा शुक्ला, कुशल गुप्ता ने शानदार अभिनय किया।
दूसरे नाटक रॉग नंबर में व्हील चेयर पर अपनी जिंदगी गुजार रहे मानव के दोनों पैर एक कार एक्सीडेंट में बेकार हो चुके हैं। हालांकि उसकी पत्नी सत्या उसका बहुत ख्याल रखती है लेकिन मानव सत्या पर शक करता है। उसे लगता है कि उसके दोस्त संभव के साथ सत्या का अफेयर चल रहा है। इस बीच मानव के पास एक कॉल आती है, जो कि रॉग नंबर है। कॉल करने वाली खूबसूरत कल्पना अपने नीरस जीवन में खुशियों के कुछ पल तलाश रही है। बूढ़े अमीर की पत्नी कल्पना दिन भर की बोरियत से बचने के लिए एक काल्पनिक प्रेमी आकाश का नंबर तलाश रही है मगर कॉल लगती है मानव को। संभव की मां का निधन होने पर सत्या शोक व्यक्त करने उसके घर जाती है। मानव को पता चलता है तो उसके दिमाग में चल रही उथल-पुथल बढ़ जाती है। मानव उसे सत्या की बेवफाई के बारे में बताता है।
एक बार फिर कल्पना की कॉल आती है, उसके सकारात्मक नजरिये और बेबाक बातों से अब तक मानव कशमकश के बीच शायद किसी फैसले तक पहुंच चुका है। रिश्तों के बीच जमी बर्फ पिघलती है। मानव मुस्कराते हुए सत्या का हाथ थाम लेता है।
नाटक में दीपक राज राही, दीपिका सिंह, संध्या सिंह, आयुष के बेहतरीन अभिनय ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया।
पाली भूपिंदर सिंह द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन डाॅ. ओमेन्द्र कुमार ने किया। दोनो नाटकों में रूप सज्जा – महेश व प्रियंका सिंह, संगीत – विजय भास्कर व प्रकाश परिकल्पना – कृष्णा सक्सेना की रही। सहयोग – रिभु श्रीवास्तव, सुधीर सिन्हा, डाॅ अशोक कुमार शुक्ल, विपिन, रवि तिवारी, अंशू श्रीवास्तव, दिव्या, वर्शिता, ओम और संयोजन – विनय श्रीवास्तव ने किया।
Anveshi India Bureau