गाजियाबाद। सुप्रसिद्ध साहित्यकार से. रा. यात्री की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए जाने-माने लेखक महेश दर्पण ने कहा कि यात्री जी एक सच्चे लेखक थे। जिन्होंने अपने अनुभव के आधार पर जो रास्ता अर्जित किया वही रास्ता पाठकों को भी दिखाया। यात्री जी ने अपने लेखन के माध्यम से समाज को जागरूक करने का काम किया है। यात्री जी इस बात को बखूबी जानते थे कि समाज बंद दिमाग में जिएगा तो पूरी पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। यात्री जी समाज की जिस विद्रूपता से जूझते, खीजते, परेशान होते थे उसे आम आदमी के भोगे हुए यथार्थ के रूप में प्रस्तुत कर देते थे।
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल नेहरू नगर में ‘कथा रंग’ द्वारा आयोजित स्मृति सभा का संचालन करते हुए पत्रकार व लेखक वीरेंद्र आज़म ने कहा कि यात्री जी साहित्य के संत थे। उनकी यह संतई उनके लेखन के साथ-साथ उनके जीवन में भी देखने को मिलती है। श्री आज़म ने कहा कि यात्री जी ने कुछ तथाकथित बड़े लेखकों की तरह मुखौटा नहीं लगाया था। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार लेखक व आलोचक सुभाष चंद्र ने उन्हें प्रेमचंद की परंपरा का लेखक बताते हुए कहा कि कई लेखक अपने लेखन में चमत्कार पैदा कर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे। लेकिन यात्री जी ने ऐसी चेष्टा के बजाए लेखन यात्रा जारी रखी। यही वजह है कि उनका लेखन ही उन्हें श्रेष्ठ साबित करता है। डॉ. अरविंद डोगरा ने कहा कि उनके जैसा जीवंत व्यक्ति मिलना कठिन है। यात्री जी जैसे व्यक्तित्व का हमारे बीच होने का क्या अर्थ होता है इसका बोध उनके जाने के बाद उत्पन्न रिक्त्ता से ही होता है। शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा कि यात्री जी जितने बड़े कहानीकार थे उतने ही सिद्ध इंसान भी थे। डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने कहा कि उन जैसी कलमकार को गौहर बनाने का श्रेय यात्री जी के मार्गदर्शन और प्रेरणा को ही जाता है। उनके पुत्र आलोक यात्री ने कहा कि ‘कथा रंग’ उनकी विरासत के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।
‘कथा रंग’ के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने कहा कि उन जैसा इंजीनियर सक्रिय लेखन में यात्री जी की प्रेरणा की वजह से ही उतर सका। डॉ रमा सिंह ने कहा कि आम आदमी की वेदना ही यात्री जी की शब्द शक्ति थी। वह सदैव भीतर बाहर की यात्रा में लीन रहे। यही वजह है कि जैसा जीवन उन्होंने जिया वैसा ही कागज पर उतार दिया। फिल्मकार रवि यादव ने कहा कि यात्री जी के न होने की वजह से उन जैसे लोगों का एक बड़ा वर्ग स्वयं को निर्धन महसूस कर रहा है। लेखक सुभाष अखिल ने कहा कि समकालीन लेखकों में वह सबसे लोकप्रिय रचनाकार थे। डॉ. अशोक मैत्रेय ने कहा कि यात्री जी के पास एक तीसरी आंख थी, जिससे वह समाज का सूक्ष्म विश्लेषण कर पाते थे। उन्होंने कहा कि यात्री कि यात्री जी दैहिक रूप से भले ही हमारे मध्य न हों लेकिन अपने लेखन के जरिए वह हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगे। डॉ. नवीन चंद लोहनी ने कहा कि संत परंपरा के लेखक का ऋण चुकाने का दायित्व हम सब पर है और यात्री जी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ही हम ऋण मुक्त हो सकते हैं। योगेंद्र दत्त शर्मा ने कहा कि यात्री जी ने कभी पुरस्कारों के लिए नहीं बल्कि अपने पाठकों के लिए ही लिखा। कवयित्री डॉ. वीना मित्तल, डॉ. तारा गुप्ता एवं अंजू जैन के अलावा मेघना यात्री व डॉ. परिधि यात्री ने भी अपने उद्गार प्रकट किए। डॉ. वीना शर्मा द्वारा यात्री जी की कहानी ‘इंसान कहां है’ एवं रिंकल शर्मा द्वारा उनके व्यंग्य ‘किस्सा एक खरगोश का’ का पाठ भी किया गया। इस अवसर पर लेखिका निर्देश निधि को उनकी कहानी ‘मैं ही आई हूं बाबा’ को ‘सुमित्रा देवी स्मृति कथा रंग सम्मान’ से अलंकृत किया गया।
इस मौके पर आलोक अविरल, डॉ. अजय गोयल, विपिन जैन, वागीश शर्मा, वंदना वाजपेई, सिनीवाली, विपिन जैन, जगदीश पंकज, असलम राशिद, वंदना कुंअर रायजादा, मनु लक्ष्मी मिश्रा, राम प्रकाश गौड़, तुलिका सेठ, दीपाली जैन ‘ज़िया’, पूनम मनु, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा, बी. एल. बत्रा, सुरेन्द्र शर्मा, राधारमण, पं. सत्य नारायण शर्मा, महकार सिंह, सुब्रत भट्टाचार्य, शकील अहमद सैफ, विनय विक्रम सिंह, संजीव शर्मा, अनिल शर्मा, मनोज शाश्वत, उत्कर्ष गर्ग, प्रभात चौधरी, अतुल जैन, तौषिक कर्दम, विकास सिंह खारी,संजय भारद्वाज, अशहर इब्राहिम, ओंकार सिंह, संदीप वैश्य, गीता रस्तौगी, सुमन गोयल, संध्या यात्री, सुनील बंसल, दीपा गुप्ता, रजनीश बंसल, अरुणा बंसल, अनिल गुप्ता, मनीषा गुप्ता मनु, अनुभव यात्री, तन्मय, अभिनव, शशि कांत भारद्वाज, नीलम, दीपक श्रीवास्तव ‘नीलपदम’, अजय मित्तल, डी. डी. पचौरी व दीपा गर्ग सहित बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार और गणमान्य लोग उपस्थित थे।