डाॅ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर इविवि हिंदी विभाग के शताब्दी वर्ष समारोह के अंतर्गत ‘दलित साहित्य और बाबा साहेब डाॅ. भीमराव आंबेडकर’ विषय पर व्याख्यानमाला आयोजित की गई।
डाॅ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर इविवि हिंदी विभाग के शताब्दी वर्ष समारोह के अंतर्गत ‘दलित साहित्य और बाबा साहेब डाॅ. भीमराव आंबेडकर’ विषय पर व्याख्यानमाला आयोजित की गई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट, सामाजिक चिंतक गुरु प्रसाद मदन ने कहा कि डाॅ. आंबेडकर ब्राह्मण के नहीं, ब्राह्मणवाद के विरोधी थे।
ब्राह्मणवाद ब्राह्मण, दलित या अन्य किसी भी जाति में हो सकता है। आंबेडकर शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना चाहते थे जो उनके ‘बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय’ में निहित मूल्य हैं। उन्होंने शोषण का कारण जाति को नहीं बल्कि इंसान को माना। मदन ने कहा कि हिंदी साहित्य की पहली दलित कविता 1914 में प्रकाशित हीराडोम की ‘अछूत की शिकायत’ नहीं बल्कि इससे एक वर्ष पहले स्वामी अछूतानंद द्वारा लिखी ‘इतिहास पढ़ के देखो’ है, जो 1905 से 1913 तक आर्य समाज में स्वामी हरिहरानंद के नाम से विख्यात थे।
अतिथियों का स्वागत वक्तव्य में डाॅ सूर्यनारायण ने कहा कि आंबेडकर और वामपंथ के विचारों में समीपता होते हुए भी एक गहरा अंतर्विरोध है। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता सीएमपी डिग्री काॅलेज के प्रो.दीनानाथ ने आंबेडकर विचारधारा के ऐतिहासिक विकासक्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डाॅ. आंबेडकर मध्यकालीन संत कवि कबीर और रैदास से प्रभावित दिखते हैं। मध्यकाल में कबीर जातिवाद का खंडन करते हैं तो आंबेडकर इसे संविधान के अनुच्छेद-17 के अंतर्गत शामिल करते हैं। वहीं, रैदास के बेगमपुरा की अवधारणा संविधान की प्रस्तावना स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के रूप में वर्णित है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. भूरेलाल ने आजीवक परंपरा के संदर्भ में आंबेडकर के विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने ऐतिहासिक आधार पर आंबेडकर दर्शन का विकास कर उसे समृद्ध करने की बात कही। कार्यक्रम का संचालन डाॅ राजू गाजूला ने किया। डाॅ विजय रविदास ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस दाैरान प्रो. आशुतोष पार्थेश्वर, प्रो.उमेश, प्रो. वीरेंद्र मीणा, डाॅ जनार्दन, डाॅ. संतोष सिंह व शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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