Saturday, July 5, 2025
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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद बोले: संगम हमारी एकता- प्रेम- त्याग- तपस्या – संकल्पों का प्रतीक, इसे संजोकर रखें

संतों के बीच ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ में कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेवाक राय से सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने परमधर्म संसद के जरिए कई मुद्दों पर निर्णय भी लिया है। महाकुंभ से जुड़े विविध पक्षों पर उनसे विस्तार से बात की अनूप ओझा ने…।

संगम की रेती पर अदृश्य सरस्वती के रूप में देश भर से आए धर्माचार्य ज्ञान की सरस्वती का पान विश्व समुदाय को करा रहे हैं। संतों के बीच ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ में कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेवाक राय से सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने परमधर्म संसद के जरिए कई मुद्दों पर निर्णय भी लिया है। महाकुंभ से जुड़े विविध पक्षों पर उनसे विस्तार से बात की अनूप ओझा ने…।

प्रश्न: कुंभ है क्या?भारतीय संस्कृति में कुंभ को किस रूप में व्यक्त करेंगे।

उत्तर: असल में कुंभ कलश को कहा जाता है? कलश यानी घड़ा। कुंभ पूर्णता का प्रतीक है। वैसे कुंभ दो तरह का होता है। एक खाली कुंभ और एक भरा हुआ। हम सब खाली हैं। इसलिए कि हमारे हृदय रूपी कुंभ में भरने के लिए बहुत इच्छाएं हैं। यह मिल जाए, वह मिल जाए। कुछ न कुछ पाने के लिए रीता घड़ा आकुल है। लेकिन जब हमारे भीतर पूर्णता आ जाएगी , तब हमको कुछ नहीं चाहिए।

जब तक भौतिकता है, तबतक अधूरा कुंभ पूर्णता के लिए भटकता रहेगा। संगम पर लगा कुंभ अनंत तत्वों से भरा हुआ है। इस कुंभ में डुबकी लगाने से आध्यात्मिकता समाहित हो जाती है। हृदय रूपी घट भी गंगा, यमुना में डुबकी लगाने से भर जाता है। संतों से उपदेश प्राप्त कर लोग प्रसन्न हो जाते हैं। यही कुंभ की महिमा है। यह हमेशा भरा हुआ होता है और इसमें डुबकी लगाने से जीवन की रिक्तता दूर हो जाती है।

प्रश्न: कहा जा रहा है कि संगम के तट पर 144 साल बाद दुर्लभ संयोग में विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन महाकुंभ के रूप में हो रहा है, इस पर आपकी राय क्या है।

उत्तर: देखिए, इस तरह की घोषणाएं करना उचित नहीं है। महाकुंभ 12 साल के बाद आता है। अंग्रेजी तारीख के हिसाब से। लेकिन कईबार 11 वर्ष पर भी कुंभ लगता है। अधिकारिक रूप से जब इस बात को कहा जाने लगा कि 144 साल बाद कुंभ लगा है, तब मैंने मेला प्रशासन को मौखिक और लिखित दोनों रूपों में बताया था कि कुंभ -2025 जैसी संख्या को मत जोड़िए। इस घोषणा में भी सुधार किया जाए। इसिलए कि कुंभ तिथि और ग्रहों के संयोग से लगता है। असल में प्रयाग का गजेटियर देखेंगे तो पिछला कुंभ कब लगा था, पता चल जाएगा। कुंभ माघ के महीने में तिथियों में होता है। इसमें अंग्रेजी की तारीख लगाना न्याय संगत नहीं है।

प्रश्न :पहली बार ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के पद पर अभिषिक्त होने के बाद महाकुंभ में आपका संगम तट पर पदार्पण हुआ है । आप हमेशा नए प्रयोग करते रहे हैं। सनातन को लेकर इस कुंभ में भी कोई प्रयोग है ?

उत्तर: हमने इस कुंभ में प्रयोग किए हैं । परम धर्म संसद लगाई है। बहुत विषयों पर धर्मादेश पारित हुए हैं। उसे प्रकाशित कर हर सनतनी के घर भेजेंगे। यही महाकुंभ का संदेश होगा। पुराने समय से नियम रहा है कि जब धर्मात्मा लोग यहां जुटते थे, तब 12 वर्षों की नीति की घोषणा करते थे। हमने इस बार कुंभ पर्व संदेश तैयार किया है। हम शंकराचार्य धर्मदूत के माध्यम से इसे जन-जन तक ले जाएंगे।

प्रश्न: महाकुंभ में आपने गोरक्षा यज्ञ के जरिए अपना संदेश दिया और भारतीय संस्कृति सनातन को आपने परिभाषित करने के साथ-साथ आगे बढ़ाने का मार्गदर्शन किया। आप विश्व समुदाय को इस महाकुंभ से क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर: देखिए अपना संदेश है कि बटो मत, इकट्ठा रहो। लेकिन इकट्ठा होंगे कैसे। इकट्ठा रहने के लिए बहाना भी तो होना चाहिए। कोई गुलदस्ता ही नहीं है हमारे पास, जिसमें सारे लोग एक हो सकें। हमने देखा कि सनातन धर्म में हमारी गो माता हैं। भारत माता के बारे में चर्चा की जाती है, लेकिन उनकी उपसना पद्धति नहीं मिलती। गोमाता हर हिंदू की माता है। इसलिए गो माता की रक्षा का संदेश मैंने दिया है।

जो गऊ माता को अपना माता मानता होगा, वह अपनी मां के लिए एकजुट होगा। हम सबको भाई चारे में बंधाने वाली मां गोमाता ही हैं। एकता का सबसे बड़ा स्रोत भी गोमाता हैं। गो माता को दुख होगा तो सबको कष्ट होगा। विश्व समुदाय के लोग गोमाता की रक्षा के लिए आगे आएं। गाय को वेदों-पुराणों ने भी माना है। उसकी रक्षा सबको करनी चाहिए। गाय को विश्व माता के रूप में निरुपित करना चाहिए। यह हो गया तो बादलों की तरह मंडराते संकट दूर हो जाएंगे और दुनिया में खुशहाली आ जाएगी।

प्रश्न :संगम की महिमा और शक्ति को किस रूप में देखते हैं

उत्तर: संगम पर दो धाराएं आपस में मिलती हैं। दो नदियों का पुण्य प्रवाह सबको जोड़ता है। प्रयाग वह क्षेत्र है जहां गंगा-यमुना का संगम है। यही संगम हमारी एकता, प्रेम, त्याग, तपस्या और संकल्पों का प्रतीक है। संगम में संगमित होना, संगम में मिलना यह आध्यात्मिक रूप से हम एक-दूसरे मिले हैं। अनेकता में एकता का दर्शन इसी संगम पर होता है। इस भूमि की प्रशंसा वेदों, शास्त्रों ने भी की है। यह भूमि पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

प्रश्न : आप सनातन बोर्ड के गठन के पक्ष में है या वक्फ बोर्ड भंग करने के?

उत्तर: वक्फ बोर्ड से हमारा कोई लेना देना नहीं है। जो वक्फ बोर्ड बनाए हों वह जाने,कि इस पर उनकी क्या दृष्टि । सनातन बोर्ड पर भी मेरा कहना है कि वक्फ बोर्ड है इसलिए सनातन बोर्ड बने, हम इस पक्ष में भी नहीं है। रही बात अगर हमारे धर्म संस्थानों के संचालन के लिए एक केंद्रीयकृत नीति बनाने की जरूरत है तो हमें उस पर काम करना चाहिए, ताकि धर्म के संरक्षण का काम हो सके।

मुसलमानों के यहां वक्फ बोर्ड है, इसिलए हमारे यहां सनातन बोर्ड बनना चाहिए, हम इसके पक्ष में नहीं है। कोई सरकार फिर आएगी, वह सनातन बोर्ड में भी संशोधन करने लगेगी। इस मामले को बिना समझने कुछ नहीं करना चाहिए। इसके लिए हमने सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया है। धर्माचार्य है सनातन के संरक्षण के लिए नीति बनाएं। सबसे पहले जो देव स्थान सरकार ने अधिग्रहीत कर लिया है, उसे वापस मांगा जाए।

प्रश्न: महाकुंभ हादसे के लिए आप किसको जिम्मेदार मानते हैं, क्या इस तरह की घटना से बचा जा सकता था।

उत्तर: महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर हुए हादसे से बिल्कुल बचा जा सकता था। जब पहले से पता था कि हमारे पास इतनी ही जगह है। इतनी बड़ी संख्या में लोग आने वाले थे, तो पहले से समुचित व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई। यह कहना कि पहले भी भगदड़ होती थी और अब भी हो गई ,यह अनुचित है । सबसे ज्यादा अफसोसजनक है घटना को छिपाना। रात भर छिपाना और दिन भर छिपाए रखना।

एक जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा यह कहना कि संगम पर कोई हादसा हुआ ही नहीं, अफवाहों पर ध्यान न दें। जबकि, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री ने सुबह यह कहते हुए शोक-संवेदना व्यक्त की कि संगम पर हादसे में कुछ लोग मारे गए हैं। इसके विपरीत प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिन भर इस घटना को छिपाए रहे और इसे अफवाह बताते रहे। मेरा मानना है कि हमारी व्यवस्था में कहीं न कहीं चूक हो गई। इस चूक की समीक्षा की जानी चाहिए। जांच का निष्कर्ष भी जल्द सामने आना चाहिए। जांच कमेटी के नाम पर इस घटना को लंबित रखना भी गलत होगा।

 

 

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