परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद दीक्षा अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटीं। कोचिंग पढ़ाकर मिलने वाले पैसे एकत्र कर वह साइकिल से घर से 15 किलोमीटर दूर स्थित शूटिंग रेंज ज्वाइन किया। साइकिल में भोर में चार बजे पहुंचना ही अपने आप में एक चुनौती है लेकिन, दीक्षा पीछे नहीं हटीं।
यमुनापार के महेवा में स्थित गंगोत्रीनगर की रहने वाली दीक्षा वैश्य रोजना 15 किलोमीटर की दूरी तय कर महेवा से तेलियरगंज आती हैं और निशाना साधती हैं। दीक्षा बताती हैं कि वे एक बार मेले में गुब्बारे पर निशाना लगाने वाली दुकान पर पहुंचीं। 20 में से 18 गोली से गुब्बारे फोड़ दिए। इस पर दुकान वाले ने कहा कि निशाना इतना अच्छा है तो निशानेबाज क्यों नहीं बन जाती। इसी एक शब्द ने उन्हें निशानेबाजी के क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित कर दिया।
दीक्षा ओलंपिक में निशाना लगाने की तैयारी कर रही हैं। पिता फेरी लगाने का काम करते हैं। पिता की आर्थिक स्थिति को देखकर कभी घर पर कहने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि, निशानेबाजी का इतना जुनून था कि खुद ही शूटिंग रेंज के बारे में पता किया। रेंज घर से 15 किलोमीटर दूर होने और फीस ज्यादा होने के चलते अरमान को दिल में ही संजो कर रह गई। इसके बाद दीक्षा ने फैसला किया कि खुद कमाएंगी और इसके जरिये ही रेंज में अभ्यास करेगी।
ट्यूशन पढ़ाकर शूटिंग रेंज में लिया दाखिला
फिर दीक्षा ने घर-घर जाकर बच्यों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। कुछ धन इकट्ठा हुआ तो पिता के सहयोग से रेंज में दाखिला ले लिया। 15 किलोमीटर दूर रेंज में सुबह चार बजे पहुंचना आसान नहीं था, लेकिन दुढशक्ति इतनी मजबूत थी कि मौसम की हर मार झेलते हुए सुबह चार बजे सइकिल से गंगोत्रीनगर से तेलियरगंज का सफर तय करने लगीं। कई बार उतार-चढ़ाव की स्थिति आई। पैसे की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण एक वक्त ऐसा भी आया की उन्हें आठ महीने के लिए रेंज को छोड़ना पड़ा, लेकिन फिर पैसों की व्यवस्था कर रेंज को दोबारा ज्वाइन किया।