22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी घटना के बाद से आज तक राष्ट्रीय और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं को पढ़ व सुनकर एक ओर जहां सुखद अहसास हो रहा है कि इसका मुंह तोड़ जवाब देने के लिए पूरा देश एकजुट है वहीं थोड़ा डर भी लग रहा है कि कहीं किसी भी वर्ग से किसी कट्टरपंथी की भावुकता पूर्ण कोई प्रतिक्रिया न भड़क जाए।
आज ( 4 मई 2025 ) दैनिक हिन्दुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर एक गंभीर कॉलम पढ़ा।
” भावुकता और भारतभक्ति का फर्क ” शीर्षक से अखबार के प्रधान संपादक शशि शेखर द्वारा लिखत कॉलम में बहुत सी जानकारियां दी गईं हैं। इन्हीं में से एक यह भी है कि इस नाजुक वक्त में भी कुछ लोग सांप्रदायिकता का बीज रोपने में लगे हुए हैं। पिछले दिनों वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के बाहर कुछ लोगों ने प्रदर्शन किया। उनकी मांग थी कि मंदिर की सेवा में जुटे मुस्लिमों का बहिष्कार किया जाए। मंदिर ट्रस्ट का जवाब दो टूक था। ये लोग सदियों से भगवान के वस्त्र , मुकुट और चूड़ियां बनाते आए हैं। इन्हें खुद से अलग नहीं किया जा सकता।
समझ और नासमझी के ऐसे तमाम उदाहरण सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं।……
यह समय सरकार और समाज की एकजुटता का है , न कि विद्वेष और उकसावे का।
पूरा लेख पठनीय है।
अनंत अन्वेषी
Anveshi India Bureau