Mahadevi Verma : आधुनिक युग की मीरा कही जाने वालीं महादेवी वर्मा लकड़ी के एक तख्त पर सोती थीं और अपना ज्यादातर लेखन रात्रि के दूसरे पहर में करती थीं। गंभीर विषयों पर लिखने वाली महादेवी अक्सर अपनों के साथ चर्चा के दौरान बहुत खिलखिलाकर हंसती थीं। आज जब प्रकृति से छेड़छाड़ के भयावह परिणाम पहाड़ पर देखने को मिल रहे हैं, तब प्रयागराज में 11 सितंबर 1987 को अंतिम सांस लेने वालीं पद्म विभूषण महादेवी वर्मा के संग्रह ”हिमालय” और कहानी ”गिल्लू” जैसी रचनाएं फिर से प्रासंगिक हो उठी हैं।
साहित्यकार महादेवी वर्मा कभी दर्पण नहीं देखती थीं। आज जब संगमनगरी के साहित्यप्रेमी छायावाद काल की अनूठी रचनाकार की पुण्यतिथि मना रहे हैं, तब उनके मनमौजी स्वभाव को दर्शाती बातें भी याद कर रहे हैं। उनका प्रकृति प्रेम और मानवता के प्रति दायित्वबोध तो उनकी रचनाओं में दिखता है, लेकिन उनका खिलखिलाकर हंसना और तब के साहित्यकारों के साथ भाई-बहन के रिश्ते वाला गुण शिवचंद्र नागर और मैिथलीशरण गुप्त जैसे बड़े नामों के कई संस्मरणों मे लिखा मिलता है। प्रयागराज की सांस्कृतिक व साहित्यिक विरासत को संजोने में जुटे सरस्वती पत्रिका के संपादक और कई पुस्तकों के लेखक रविनंदन सिंह के पास महादेवी वर्मा से जुड़े उस समय के बड़े साहित्कारों के कई संस्मरण हैं।
निबंधकार शिवचन्द्र नागर ने वर्ष 1951 के एक ऐसे ही संस्मरण में लिखा था कि जब एक बार वह एक पत्रिका लेकर महादेवी के पास गए और कहा कि ”आपका एक चित्र इस पत्रिका में छपा है, पर वह आपसे बिल्कुल नहीं मिलता।” यह सुनकर महादेवी ने कहा कि ”मुझे तो पता नहीं, मिलता है या नहीं।” शिवचन्द्र नागर ने जब वह पृष्ठ खोलकर दिखाया और कहा कि ”आप चाहे शीशे में मिलाकर देख लीजिए।” महादेवी हंसते हुए बोलीं ” तो भाई, अब इसके लिए एक दर्पण भी रखना होगा।” नागर के संस्मरण में एक जगह लिखा है कि महादेवी अपने हाथ में आई पूरी पत्रिका पढ़ जाती थीं, किंतु उसमें अपने विषय में छपे लेखों और आलोचनाओं को कभी नहीं पढ़ती थीं।
महादेवी वर्मा के बारे में एक और रोचक संस्मरण राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का है। वह लिखते हैं कि एक बार साहित्यकार संसद में रामधारी सिंह दिनकर के अभिनंदन के लिए एक सभा आहूत की गई थी। उस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि ”मेरी प्रयाग यात्रा केवल संगम स्नान से पूरी नहीं होती, उसको सार्थक बनाने के लिए मुझे सरस्वती अर्थात महादेवी के दर्शन के लिए प्रयाग महिला विद्यापीठ जाना पड़ता है। जहां संगम में कुछ फूल अच्छत भी चढ़ाना पड़ता है, वहीं सरस्वती के मंदिर में मुझे कुछ प्रसाद मिलता है।”
सूर्यकांत त्रिपाठी ”निराला” तो महादेवी को बहन मानते थे। उन्होंने उनके बारे में लिखा था- ”हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणा पाणी, स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिमा कल्याणी।”