स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि श्रृंगवेरपुर धाम का भौतिक के बजाय पारंपरिक विकास होना चाहिए, जिससे यहां आने वाले लोगों के में श्रद्धा का भाव जागृत हो। उन्होंने कहा कि श्रृंग्वेरपुर आकर निषाद वंशजों और केवट से मिलने का सौभाग्य मिला, जिन्होंने भगवान श्री राम को गंगा के उस पार उतारा था।
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि श्रृंगवेरपुर का महत्व किसी भी मायने में रामेश्वरम, चित्रकूट और अयोध्या से कम नहीं है। यहां पर भगवान श्री राम के चरण पड़े थे। भगवान राम अयोध्या से वन के लिए निकले तो सबसे पहले श्रृंगवेरपुर पहुंचे थे। वासुदेवानंद शनिवार को 35वें राष्ट्रीय रामायण मेला की कुशलता के लिए गंगा पूजन पूजन करने के लिए निषादराज की धरती पर पहुंचे थे।
उन्होंने कहा कि श्रृंगवेरपुर धाम का भौतिक के बजाय पारंपरिक विकास होना चाहिए, जिससे यहां आने वाले लोगों के में श्रद्धा का भाव जागृत हो। उन्होंने कहा कि श्रृंग्वेरपुर आकर निषाद वंशजों और केवट से मिलने का सौभाग्य मिला, जिन्होंने भगवान श्री राम को गंगा के उस पार उतारा था। कहा कि यदि श्रृंगवेरपुर नहीं होता तो दूसरे अन्य तीर्थ की स्थापना भी नहीं होती। उन्होंने चित्रकूट के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा बनाए जा रहे सेतु को देखकर प्रसन्नता जाहिर की।
इसके पूर्व वासुदेवानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय रामायण मेला की कुशलता के लिए गंगा पूजन एवं दिव्य गंगा आरती की। गंगा पूजन कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ किया गया। स्वस्तिवाचन एवं देव आह्वान के साथ भगवती गंगा की आराधना की गई। इस दौरान महंत कमल दास जी महाराज, वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ने राष्ट्रीय रामायण मेला की कुशलता के लिए संतों संग गंगाजी का पूजन किया।