इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजे गए जवाब में शब्दों का गलत चयन करने पर हाईकोर्ट ने बलिया के पुलिस अधीक्षक को कड़ी फटकार लगाई है। कहा कि यह हाईकोर्ट है, कोई भी न्यायालय नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि तहसीलदार राज्य के एक अधिकारी हैं वह एसपी के अधीन नहीं हैं।
बलिया के गजेंद्र रसड़ा निवासी हैं। सार्वजनिक उपयोग की जमीन को कुछ लोगों ने अतिक्रमण किया था। जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए जनहित याचिका दाखिल की। कोर्ट के आदेश पर तहसीलदार ने मौका मुआयना किया और अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया, लेकिन पत्थर बाजी होने के चलते अतिक्रमण नहीं हटा पाए। इस पर कोर्ट ने एसपी से शपथपत्र मांगा था।
एसपी ने कोर्ट में प्रस्तुत हलफनामे में कहा कि उन्हें तहसीलदार, रसड़ा, बलिया से अतिक्रमण हटाने के लिए कोई अनुरोध प्राप्त नहीं हुआ। साथ ही उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वह “किसी भी अदालत” के आदेशों का पालन करने को हमेशा तैयार रहते हैं। अदालत ने “किसी भी अदालत” जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि न्यायालय एक सम्मानित संस्था है और उसे इस प्रकार साधारण संदर्भ में नहीं लिया जा सकता। न्यायालय ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया है कि यह आदेश 24 घंटे के भीतर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, बलिया के माध्यम से पुलिस अधीक्षक तक पहुंचा दिया जाए। अगली सुनवाई नौ मई नियत की गई है।
तहसीलदार एक सहायक कलेक्टर हैं, वह एसपी के अधीन नहीं
न्यायालय ने एसपी के इस बात पर भी आपत्ति जताई कि पुलिस बल के लिए तहसीलदार से कोई अनुरोध नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि तहसीलदार एक सहायक कलेक्टर हैं और वह राजस्व विभाग में राज्य का एक अधिकारी होता है। वह एसपी के अधीन नहीं हैं। अगर तहसीलदार अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने जा रहा है तो वह एसपी को एक मांग पत्र के माध्यम से इसकी जानकारी देगा। एसपी को स्वयं यह आकलन करना होगा कि उक्त कार्रवाई के लिए कितने पुलिस बल की आवश्यकता है। ताकि बेदखली आदेश का पालन करने के लिए राज्य को शर्मिंदगी न उठानी पड़े।