High Court Allahabad : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बालिग जोड़ों को राहत देते हुए कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना कोई गैर कानूनी नहीं है। जस्टिस विवेक कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने कहा कि यह समाज को स्वीकार हो या न हो लेकिन कोई अपराध नहीं है। जोड़ों की जान की सुरक्षा करना राज्य का मौलिक दायित्व है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे बालिग जोड़ों को बड़ी राहत देते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप गैर-कानूनी नहीं है और ऐसे जोड़ों की जान व स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य का सांविधानिक दायित्व है। कोर्ट ने कहा कि बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी के साथ भी रहने के लिए स्वतंत्र है और परिवार या समाज का कोई भी व्यक्ति उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल नहीं दे सकता। यह आदेश विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ ने आकांक्षा सहित 12 रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सर्वोच्च है। सिर्फ इस आधार पर कि याचिकाकर्ताओं ने शादी नहीं की है, उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। लिव-इन रिलेशनशिप समाज को स्वीकार हो या न हो, इसे अपराध नहीं कहा जा सकता। राज्य सरकार की इस दलील को कोर्ट ने खारिज कर दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है और ऐसे मामलों में सुरक्षा देना राज्य पर गैर-कानूनी बोझ होगा। कोर्ट ने कहा कि सांविधानिक कर्तव्यों से राज्य पीछे नहीं हट सकता।
कोर्ट ने लता सिंह और एस. खुशबू जैसे सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सहमति से साथ रह रहे वयस्कों का रिश्ता अपराध नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में आदेश दिया कि यदि जोड़ों को खतरा है तो वे आदेश की प्रति के साथ पुलिस कमिश्नर,एसएसपी और एसपी से संपर्क करें। पुलिस यह सुनिश्चित करने के बाद कि दोनों बालिग हैं और सहमति से साथ रह रहे हैं, तुरंत सुरक्षा प्रदान करे। साथ ही कहा कि बिना एफआईआर के कोई जबरन कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए याचिका स्वीकार कर ली।
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