इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिनियम, 1861 और उत्तर प्रदेश पुलिस विनियम के अनुसार पुलिस अधिकारी अपने पद से तब तक इस्तीफा नहीं दे सकते जब तक कि वे दो महीने का लिखित नोटिस न दें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिनियम, 1861 और उत्तर प्रदेश पुलिस विनियम के अनुसार पुलिस अधिकारी अपने पद से तब तक इस्तीफा नहीं दे सकते जब तक कि वे दो महीने का लिखित नोटिस न दें। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने याची के इस्तीफा स्वीकृति व वसूली आदेंशों को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति विकास बुधवार की एकलपीठ ने अलीगढ़ निवासी अजीत सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है।
याची, अजीत सिंह को 2017 को नागरिक पुलिस में उप-निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था, जबकि वह पहले दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर था। खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए याची ने 28 दिसंबर 2017 को पुलिस महानिरीक्षक मेरठ रेंज को एक पत्र लिखकर उप-निरीक्षक के पद से मुक्त करने का अनुरोध किया। पुलिस महानिरीक्षक ने 20 जनवरी 2018 को याची का त्यागपत्र स्वीकार कर लिया और प्रशिक्षण पर खर्च 4 लाख 97 हजार 6 सौ रुपये वसूली का निर्देश दिया। इसके बाद याची ने त्यागपत्र वापस लेने के लिए आवेदन दिया जिसे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मेरठ ने 22 जून 2022 को खारिज कर दिया। इसे याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि त्यागपत्र वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं था क्योंकि इसमें दो महीने के अनिवार्य नोटिस का उल्लेख नहीं था। साथ ही अन्य दलीलें दी। कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद पाया कि त्यागपत्र में दो महीने का नोटिस नहीं दिया गया था, यह दोषपूर्ण था। त्यागपत्र अधिनियम और विनियम के विपरीत होने के कारण उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। साथ ही यह भी कहा कि नियमानुसार इस्तीफा तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक सरकार या पुलिस फंड का पूर्णरूप भुगतान न हो जाए। याची ने अभी तक बकाए का भुगतान नहीं किया है। इस कारण भी इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जा सकता था। कोर्ट ने याची को चार महीने के भीतर सभी परिणामी लाभ देने का निर्देश दिया।