Monday, December 23, 2024
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UP : पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे राहत, फाइनेंस कंपनी पर दर्ज करोड़ों की ठगी व मनी लॉन्ड्रिंग का केस रद्द

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, एम थ्री एम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से एफआईआर व प्रवर्तन निदेशालय में दर्ज ईसीआईआर (एनफोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा समेत इंडिया बुल्स फाइनेंस हाउसिंग लिमिटेड व अन्य फाइनेंस कंपनियों के पूर्व-वर्तमान पदाधिकारियों समेत 18 लोगों पर दर्ज करोड़ों की ठगी व मनी लॉन्ड्रिंग के मुकदमे को रद्द कर दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, एम थ्री एम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से एफआईआर व प्रवर्तन निदेशालय में दर्ज ईसीआईआर (एनफोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

मामला गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाना क्षेत्र का है। वैभव खंड स्थित शिप्रा एस्टेट कंपनी के निदेशक अमित वालिया ने इंडिया बुल्स के पूर्व चेयरमैन समीर गहलोत, वाइस चेयरमैन एवं एमडी गगन वांगा, अश्विनी ओमप्रकाश कुमार हुड्डा, राजीव गांधी, जितेश मीर, राकेश भगत, आशीष जैन, साकेत बहुगुणा के अलावा, थ्री एम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर रूपकुमार बंसल, बसंत बंसल, पंकज बंसल, विवेक सिंघल, अनीता ठाकुर, सौरभ सुनील जैन, मनोज, रविंद्र सिंह, अजय शर्मा, राजेश चंद्रकांत शाह के खिलाफ करोड़ों की धोखाधड़ी, मारपीट, धमकी और षड्यंत्र रचने के आरोप में केस दर्ज कराया था। 

आरोप लगाया कि इंडिया बुल्स कंपनी के डायरेक्टर उनके पास आए। कहा कि वह मार्केट से कम ब्याज दर पर 1939 करोड़ रुपये का लोन दे देंगे। इसके बदले में शिप्रा एस्टेट की छह हजार करोड़ की छह संपत्तियां गिरवी रखने की शर्त रखी गई। शर्त के बाद इंडिया बुल्स कंपनी के डायरेक्टर अपनी बात से मुकर गए। 1939 करोड़ की जगह 866 करोड़ 88 लाख 76 हजार रुपये ही खाते में डाले। इसमें से भी मोटी रकम खुद निकाल ली।

इसके अलावा यह भी आरोप लगाए कि इंडिया बुल्स कंपनी ने जालसाजी के साथ फर्जी दस्तावेज तैयार कर शिप्रा एस्टेट की संपत्ति हड़पने लगी। इसके बाद कंपनी के गिरवी रखे गए शेयरों को भी कम दामों में बेच दिए। अमित वालिया का कहना था कि संपत्ति को वापस पाने के एवज में इंडिया बुल्स कंपनी के पदाधिकारियों की ओर से उनसे 1738 करोड़ रुपयों की मांग की जा रही थी।

यह एफआईआर मजिस्ट्रेट के आदेश पर नौ अप्रैल 2023 में दर्ज हो सकी थी। इसके बाद इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने भी मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया। इन सभी मामलों के खिलाफ आरोपी फाइनेंस कंपनियों के इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

कोर्ट ने क्या कहा

कोर्ट ने इंडिया बुल्स समेत अन्य कंपनियों पर दर्ज एफआईआर और ईसीआईआर को रद्द कर दिया। कहा कि यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि उधारकर्ता के कहने पर आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत प्रासंगिक तथ्यों को दबाने और छिपाने के बल पर की गई है। इसमें बिना किसी कारण के देरी की गई है। उधारकर्ता को दी गई वित्तीय सहायता को वापस पाने के लिए इंडिया बुल्स की ओर से उठाए गए वैध कदमों को विफल करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे हैं। ऐसी कार्यवाही का उद्देश्य पक्षों के बीच चल रही सिविल/मध्यस्थता कार्यवाही में लाभ उठाना भी है। इसलिए आपराधिक कार्यवाही स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

क्या है एफआईआर

किसी घटना की प्राथमिक सूचना रिपोर्ट यानी एफआईआर थाने में दर्ज की जाती है। तय समय सीमा के अंदर चार्जशीट दाखिल कर मामला कोर्ट के सुपुर्द किया जाता है। एफआईआर दर्ज होने के बाद अदालत की अनुमति के बैगर उसे वापस नहीं ले सकते।

क्या है ईसीआईआर

आर्थिक अपराधों की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) करता है। ईसीआईआर एक औपचारिक एंट्री होती है, जिसे ईडी दर्ज करता है। पीएमएलए 2002 में यह प्रावधान नहीं था। इसे बाद में जोड़ा गया है। ईसीआईआर के बारे में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 2022 में कहा था कि ईडी की ईसीआईआर एफआईआर की ही तरह है। हालांकि, जांच एजेंसी इसे आंतरिक दस्तावेज बताती है।

Courtsy amarujala.com
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