Sunday, December 22, 2024
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सर्वेक्षण : यमुना नदी में 126 प्रजाति की मछलियों का वास, पहली बार गिनी गईं मछलियों की प्रजाति

सिफरी के निदेशक डा. बीके दास के निर्देशन में पांच सदस्यीय टीम ने 2021 में यमुना नदी का सर्वे शुरू किया। मछलियों की प्रजातियों को जानने के लिए प्रयागराज के मड़ौका, बांदा के चिल्लाघाट, हमीरपुर, पचनदा, मथुरा, दिल्ली, हरियाणा के यमुना नगर और उत्तरकाशी के बरकोट से वर्ष में तीन बार मछलियों के सैंपल लेते थे।

यमुनोत्री से शुरू होकर प्रयागराज तक 1368 किलोमीटर लंबी नदी यमुना में 126 प्रजाति की मछलियां रहती हैं। केंद्रीय अंतर्स्थलीय मत्स्य अनुसंधान केंद्र (सिफरी) प्रयागराज की ओर से पहली बार पूरी यमुना नदी में मछलियों की प्रजाति का सर्वे किया गया। पांच सदस्यीय टीम ने तीन वर्ष के सर्वे में पाया कि पर्यावरणीय बदलाव का असर मछलियों पर पड़ा है। यमुना में भारतीय प्रजाति की मछलियों की आबादी कम हुई है, जबकि विदेशी प्रजाति की मछलियां बढ़ी हैं।

सिफरी के निदेशक डा. बीके दास के निर्देशन में पांच सदस्यीय टीम ने 2021 में यमुना नदी का सर्वे शुरू किया। मछलियों की प्रजातियों को जानने के लिए प्रयागराज के मड़ौका, बांदा के चिल्लाघाट, हमीरपुर, पचनदा, मथुरा, दिल्ली, हरियाणा के यमुना नगर और उत्तरकाशी के बरकोट से वर्ष में तीन बार मछलियों के सैंपल लेते थे। इसमें मछुआरों से भी मदद ली। इसी वर्ष सर्वे पूरा हो गया है। टीम के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर व केंद्र प्रभारी डा. डीएन झा ने बताया कि पूरी यमुना का पहली बार सर्वे हुआ था।

2010-11 में प्रयागराज से हरियाणा तक ही सर्वे हुआ था, तब मछलियों की 112 प्रजातियां पाई गई थी। अब यमुना के उद्गम स्थल तक सर्वे हुआ तो 126 प्रजातियां मिली हैं। उन्होंने बताया कि यमुना में भारतीय प्रजाति की मछलियों कतला, रोहू, नयन, पड़िन, गोंच, चीतल, रेंगन, रीठा, बामचर या ईल (बांदा में इसे कालिंद कहते हैं), महासिर आदि की आबादी में कमी आई है।

दूसरी ओर आठ प्रकार की विदेशी मछलियां कामन कार्प, सिल्वर कार्प, बिग हेड, थाई मांगुर, ग्रास कार्प, तिलापिया, क्रोकोडाइल फिस और बास की आबादी बढ़ी है। इनकी आबादी बढ़ने से भारतीय मछलियों पर असर पड़ा है। इसलिए समय- समय पर भारतीय प्रजाति की मछलियों के बच्चे यमुना में डाले जा रहे हैं।

कैसे आई विदेश मछलियां

सिफरी के वैज्ञानिक डा. अबसार आलम ने बताया कि व्यावसायिक तौर पर लोग विदेशी मछलियां पालते हैं। विदेशी मछलियां साल में दो बार अंडे देती हैं और इनकी ग्रोथ तेजी से होती है। इन प्रजातियों से उनकी कमाई अच्च्छी हो जाती है। बारिश और बाढ़ के दिनों में यह मछलियां तालाब से यमुना में पहुंच गई। वहां पर इन मछलियों को और अनुकूल वातावरण मिला तो आबादी तेजी से बढ़ी।

वहीं भारतीय प्रजाति की मछलियां वर्ष में एक बार ही अंडे देती हैं, इसलिए उनकी आबादी कम बढ़ी। इसके अलावा मथुरा, दिल्ली और हरियाणा आदि में पितृ पक्ष में नदी में मछलियां डालने की परम्परा है। वह आसपास से खरीदकर मछलियां डालते हैं, उसमें अधिकतर विदेशी मछलियां होती हैं। इससे यमुना में विदेशी मछलियां बढ़ी हैं।
दिल्ली में वजीराबाद से ओखला तक सिर्फ एक प्रजाति की मछली

यमुना में सबसे कम मछली दिल्ली से मथुरा तक के क्षेत्र में है। उसमें भी वजीराबाद से ओखला तक सिर्फ थाई मांगुर प्रजाति की कुछ मछली पाई गई हैं। यह मछली प्रदूषित पानी में रह सकती हैं। वहां पर यमुना नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है।

प्रयागराज से पचनदा तक सबसे ज्यादा मछलियां

इटावा और जालौन जिले के बार्डर पर यमुना में चम्बल, सिंध, पहुज और क्वांरी नदियां मिलती है। पांच नदियों के मिलन को पचनदा कहते हैं। वहां से प्रयागराज तक पानी सबसे अधिक है और इसी में मछलियों की आबादी से भी सबसे ज्यादा है।

कैसे आई विदेश मछलियां

सिफरी के वैज्ञानिक डा. अबसार आलम ने बताया कि व्यावसायिक तौर पर लोग विदेशी मछलियां पालते हैं। विदेशी मछलियां साल में दो बार अंडे देती हैं और इनकी ग्रोथ तेजी से होती है। इन प्रजातियों से उनकी कमाई अच्च्छी हो जाती है। बारिश और बाढ़ के दिनों में यह मछलियां तालाब से यमुना में पहुंच गई। वहां पर इन मछलियों को और अनुकूल वातावरण मिला तो आबादी तेजी से बढ़ी।

वहीं भारतीय प्रजाति की मछलियां वर्ष में एक बार ही अंडे देती हैं, इसलिए उनकी आबादी कम बढ़ी। इसके अलावा मथुरा, दिल्ली और हरियाणा आदि में पितृ पक्ष में नदी में मछलियां डालने की परम्परा है। वह आसपास से खरीदकर मछलियां डालते हैं, उसमें अधिकतर विदेशी मछलियां होती हैं। इससे यमुना में विदेशी मछलियां बढ़ी हैं।

दिल्ली में वजीराबाद से ओखला तक सिर्फ एक प्रजाति की मछली
यमुना में सबसे कम मछली दिल्ली से मथुरा तक के क्षेत्र में है। उसमें भी वजीराबाद से ओखला तक सिर्फ थाई मांगुर प्रजाति की कुछ मछली पाई गई हैं। यह मछली प्रदूषित पानी में रह सकती हैं। वहां पर यमुना नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है।
प्रयागराज से पचनदा तक सबसे ज्यादा मछलियां
इटावा और जालौन जिले के बार्डर पर यमुना में चम्बल, सिंध, पहुज और क्वांरी नदियां मिलती है। पांच नदियों के मिलन को पचनदा कहते हैं। वहां से प्रयागराज तक पानी सबसे अधिक है और इसी में मछलियों की आबादी से भी सबसे ज्यादा है।

 

Courtsyamarujala.com

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