नौटंकी विधा को रंगकर्म के राष्ट्रीय मानचित्र पर पुनः स्थापित करने वाले कलमकार राजकुमार श्रीवास्तव आज शाम भदोही जनपद में हृदय गति के रुकने से दुनिया से कूच कर गए।
राजकुमार श्रीवास्तव हमारे समय के महत्वपूर्ण नौटंकीकार रहे। पिछले ढाई दशकों से उनके द्वारा लिखित और महत्वपूर्ण लेखकों की रचनाओं पर आधारित रूपांतरित नौटंकियों ने देश भर में बहुत ख्याति अर्जित की है। उनकी राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त नौटंकियों में बूढ़ी काकी, बहुरूपिया, कफन, दास्तान-ए-लैला मजनू, पंच परमेश्वर, अंधेर नगरी, मालविकाग्निमित्रं, दीपदान आदि नौटंकियां रहीं हैं। स्वर्ग रंगमण्डल वर्तमान में उनकी द्वारा नौटंकी में रूपांतरित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ को प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहा है।
उनकी अन्य नौटंकी में रूपांतरित कृतियों ईदगाह, गहुला, सरयू पार की मोनालिसा, फातिहा, दृष्टिदान, पूस की रात, नित्य लीला उर्फ योग माया, नमक का दारोगा, मंत्र, खेल खिलाड़ी और आजादी के दीवाने उर्फ शहीद झूरी सिंह नामक नौटंकियाँ शामिल हैं।
ज्ञातव्य है कि बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, ईदगाह, फातिहा, पूस की रात, नमक का दारोगा और मंत्र ; अमर कथाकार प्रेमचन्द की कहानियाँ हैं जिनका बहुत मनोयोग से नौटंकी रूपांतरण कर श्री राजकुमार श्रीवास्तव ने नौटंकी विधा को समृद्ध किया है। ठीक इसी तरह गहुला, रायकृष्ण दास की कहानी है तो दृष्टिदान गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी। नित्य लीला उर्फ योगमाया फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी है, तो सरयू पार की मोनालिसा चर्चित ग़ज़लकार अदम गोंडवी की ग़ज़ल ‘ चमारों की गली ‘ नामक ग़ज़ल का नौटंकी रूपांतर है। खेल खिलाड़ी माला तन्खा की कहानी है तो बहुरूपिया, दास्तान-ऐ-लैला मजनू, आज़ादी के दीवाने उर्फ शहीद झूरी सिंह मूल रूप से श्री राजकुमार श्रीवास्तव द्वारा स्वयं लिखी गईं हैं।
जहां नौटंकी ने भारतीय रंगमंच की शास्त्रीयता की रक्षा करते हुए अपने समय और समाज की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति की है, उसका मनोरंजन भी किया है तो उसे उसके दायित्व से भी परिचित कराया है। वहीं इस रूप की नौटंकी को पुनः एक महत्वपूर्ण भारतीय रंग शैली के रूप में सामने लाने के लिए राजकुमार श्रीवास्तव जी ने अपने कलम के प्रभाव से और भी सशक्त बनाने का काम किया। रंग जगत पूरे देश में उनकी इस कला से चमत्कृत रहा।
राजकुमार श्रीवास्तव मूल रचनाओं से नौटंकी रूपांतरण में उन्हें महारत हासिल है। वे मूल रचना में अपेक्षित परिवर्तनों के साथ वस्तु के निहित अर्थ की रक्षा तो करते ही थे, उसे अनेक अर्थ – स्तरों पर ले जाते हैं। नौटंकी के उपयुक्त छंदों- दोहा, चौबोला और ठाड़ी गायकी के साथ लयबद्ध संवादों की योजना बहुत कठिन होती है। इसे मर्म – स्थलों के अनुरूप बरतते हुए श्री राजकुमार श्रीवास्तव ने अपने रूपांतरणों को प्रभावी बनाया। हम बहुत आसानी से इस बात को समझ सकते हैं कि मूल कहानियों की वस्तु और उसके मर्म को बिना कोई क्षति पहुंचाए उन्होंने उसे नए भाव विन्यासों में बांधा और उसके अर्थ – विस्तार को संभव किया है। इस रूप में मूल रचनाएं नौटंकी में ढलकर अपना नया प्रभाव ग्रहण कर पाती हैं।
हम समस्त रंगकर्मी, लोक कलाकार, संस्कृतिकर्मी और स्वर्ग रंगमण्डल के सभी कलाकार उन्हें हृदय के तल से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
Anveshi India Bureau