हाल ही में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि केंद्र सरकार शीर्ष 500 कंपनियों में युवाओं को इंटर्नशिप के लिए एक योजना शुरू करेगी। कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय इन कंपनियों के साथ मिलकर इंडस्ट्रियल स्किल्स ट्रेनिंग के लिए संसाधन जुटाएगा।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार 3.0 के पहले बजट में युवाओं के लिए कई योजनाओं का एलान किया। इनमें से एक बड़ी स्कीम है- युवाओं को इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करना। इसी सिलसिले में एक बड़ा अपडेट सामने आया है। सरकार ने अब पीएम इंटर्नशिप योजना पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत इस स्कीम को शुरू करने के लिए उद्योगों से बात करना शुरू कर दिया है।
विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सरकार ने इस योजना के लिए 500 से ज्यादा कंपनियों की सूची तैयार की है। अभी मंत्रालय ने 20 कंपनियों के साथ चर्चा की है। अन्य कंपनियों से भी चर्चा करने की तैयारी है। जैसे ही कंपनियों से चर्चा होगी उसके बाद योजना को लेकर विस्तृत कार्ययोजना मंत्रालय द्वारा तैयार की जाएगी। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर करीब 60,000 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। ये नई इंटर्नशिप योजना पढ़ाई और उद्योगों की जरूरतों के बीच की कमी को पूरा करेगी। कुल 60,000 करोड़ रुपये में से 30,000 करोड़ रुपये राज्य सरकारें देंगी, बाकी पैसे कंपनियां सीएसआर के जरिए, खासकर उपकरण खरीदने के लिए, देंगी। मंत्रालय योजना को अंतिम रूप देते वक्त पारदर्शिता के लिए जांच-पड़ताल की व्यवस्था भी करेगा।
हाल ही में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि केंद्र सरकार शीर्ष 500 कंपनियों में युवाओं को इंटर्नशिप के लिए एक योजना शुरू करेगी। कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय इन कंपनियों के साथ मिलकर इंडस्ट्रियल स्किल्स ट्रेनिंग के लिए संसाधन जुटाएगा। इस योजना के तहत, इंटर्न को हर महीने लगभग 5,000 रुपये का भत्ता और एक बार में करीब 6 हजार रुपये की सहायता मिलेगी। इन इंटर्न को ट्रेनिंग देने का खर्च कंपनियां अपनी सीएसआर गतिविधियों के माध्यम से वहन करेंगी। इस योजना में कंपनियों की भागीदारी उनकी इच्छा के अनुसार है। ये इंटर्नशिप टॉप 500 कंपनियों के सप्लायर या वैल्यू चेन पार्टनर के जरिए दी जाएगी। अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम के उलट, कंपनियों पर इंटर्न को स्थायी नौकरी देने का कोई दबाव नहीं होगा। सरकार इंटर्नशिप भत्ते का 90 फीसदी हिस्सा देगी, बाकी 10 फीसदी कंपनियां देंगी और ट्रेनिंग का खर्च कंपनियां खुद उठाएंगी।