कबीर पारख संस्थान के 47 वें वार्षिक सत्संग समारोह की शुरुआत संत कबीर के विश्व प्रसिद्ध भजन भाई रे दुई जगदीश कहां से आया को गाकर छत्तीसगढ़ से आए भजन गायक गुरशरण साहू ने अपनी आवाज में आज प्रीतमनगर स्थित आश्रम में सुनाया। पूरी सभा तालियों की गड़गड़ाहट के साथ मंत्र मुग्ध हो गई। इसके पूर्व संत कबीर की मौलिक वाणी बीजक का सस्वर पाठ किया गया।
आश्रम के संत अजय साहेब ने सत्संग प्रवचन की शुरुआत करते हुए कहा कि संत कबीर आज से 6 00 बरस पूर्व समाज में व्याप्त कुरीतियां और आडंबरों पर जबरदस्त कुठाराघात किया करते थे और सत्य तथा प्रेम का संदेश देकर मानवीय एकता और अखंडता का बाजार में खड़े होकर बिगुल फूंका करते थे कबीर खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।
फतेहपुर से आए संत श्री शंकर साहेब जी ने कबीर साहेब की सच्चाई को प्रकट करते हुए कहा कि कबीर का रास्ता सीधा और सरल है, जहां झूठ और बेईमानी के लिए कोई जगह नहीं है।संत श्री विकास साहेब जी ने विश्व शांति के लिए कबीर साहेब के विचारों की माहिती आवश्यकता बताई। उनके विचारों में वसुधैव कुटुंबकम का जीता जागता उदाहरण है। उनके लिए देश, जाति, धर्म जैसी कोई बाधा नहीं है। जिससे आदमी और आदमी में विभाजन किया जा सके। कबीर की वाणी में एक बूंद से सृष्टि रची है को ब्राह्मण को सुद्रा। कबीर के जन्म स्थान काशी से पधारे हुए संत श्री प्रेम साहब जी ने कबीर के विचारों में अंतरराष्ट्रीय झगड़ों के निपटारे का अटूट समाधान निकाल। उन्होंने अपार जन समूह को संबोधित करते हुए कबीर वाणी भाई रे दुई जगदीश कहां से आया पर कहा कि जब परम अस्तित्व में अनंत एकता है तो फिर हम अपनी मत, मजहब, परंपरा, झंडा, छाप, तिलक तथा किताब और ईश्वर वाणी को लेकर क्यों लड़ते और झगड़ते हैं।
आश्रम के संत श्री गुरुक्षेम साहेब जी ने भक्ति काल के महान अग्रणी संत कबीर को याद करते हुए कहा कि उन्होंने जन-जन के हृदय में भक्ति की धारा को बहाया है। भक्ति दक्षिण में उपजी थी और उसे रामानंद स्वामी ने उत्तर भारत में लाया था, जिसे कबीर साहेब ने देश-विदेशे हों फिरा गांव-गांव की खोरि के अनुसार जन-जन के हृदय में पहुंचाया और सबको परम तत्व को जानने के लिए प्रेरित किया।
सभा का संचालन कर रहे संत श्री गुरुभूषण साहेब ने अंतस परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि जब तक हमारा हृदय साफ सुथरा नहीं होगा तब तक जीवन टेंशन, डिप्रैशन और बीमारियों से घिरा रहेगा। यह मन तो निर्मल भया, जैसे गंगा नीर। पीछे पीछे हरि फिरे कहत कबीर कबीर।। जब मन निर्मल होने लगता है तब सब जगह परमात्मा का दर्शन होता है, यह मानव की सर्वोच्च स्थिती है, जिसके लिए जन्म हुआ है।
आश्रम के वर्तमान गुरु गद्दीनशीन श्रद्धा धर्मेंद्र साहेब ने संबोधित करते हुए कहा कि सद्गुरु कबीर साहेब जन-जन के गुरु हैं। उनके वाणी और विचार को जब हम पढ़ते हैं और गहराई में उतरते हैं तो स्वयं हमारे जीवन में मार्गदर्शन होने लगता है और हमारी समस्याओं का समाधान होता है। इसीलिए कबीर इतने व्यापक हैं और जन-जन के हृदय में समाए हैं। गांव का अनपढ़ और गवार कहे जाने वाला आदमी भी कबीर के भजनों को गुनगुनाता हुआ मिलता है और उस वक्त उनकी मस्ती का वर्णन करना असंभव है। क्योंकि वह भीतर से परम आनंदित और स्वयं में शांत है, जैसे उन्हें संसार का सारा सुख या परमात्मा मिल गया है।
आश्रम का पूरा पंडाल इस दौरान खचाखच भरा हुआ था और पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के साथ-साथ देश के विभिन्न प्रांतों से आए तकरीबन 10,000 सत्संग प्रेमियों और श्रद्धालुओं ने बड़ी शांति और प्रेम के साथ कबीर वानियो का रसास्वादन किया और अपनी ऊर्जा को जागते हुए उनके विचारों की गंगा में गोता लगाया।
इस दौरान नगर पालिका की ओर से पानी और साफ सफाई का काफी अच्छा प्रबंध रहा तथा आश्रम की ओर से प्राथमिक चिकित्सा केंद्र का सुविधा उपलब्ध है, जिसका जरूरतमंद लोगों ने भरपूर लाभ उठाया। आश्रम में आए समस्त श्रद्धालुओं की ओर से जबरदस्त कबीर भंडारे का भी अद्भुत माहौल देखने को मिला जहां सबके चेहरे पर सुकून और अहोभाव का असीम आनंद था। आश्रम परिसर के बाहर रोड पर कबीर मेले में भी आवश्यक सामग्रियों का जबरदस्त बाजार लगा है। जहां एक अलग ही रौनक है। लोग अपने मन माफिक चीजों को खरीद कर लिए जा रहे हैं, जिनमें कंठी माला और कबीर की चादरें प्रमुख हैं। वे उन्हें धरोहर के रूप में अपने घर लिए चलते हैं।
Anveshi India Bureau