Saturday, July 27, 2024
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हाईकोर्ट का अहम फैसला : वगैर नियमित विभागीय कार्यवाही के पुलिस कर्मियों का निलंबन गलत, कोर्ट ने रद्द किया आदेश

याचीगणों पर निलंबन आदेश में यह आरोप था कि इन्होंने अपने से जुड़े लोगों को कहा कि अगर किसी मामले में कथित न्याय नहीं मिल रहा है, तो वे मुख्यमंत्री के यहां जाकर धरना, प्रदर्शन और आत्मदाह करें। यह भी कहा कि ऐसा लिखकर प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक को दें, जिससे जिला स्तर से ही काम हो जाएगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बगैर नियमित विभागीय कार्यवाही के पुलिस कर्मचारियों को निलंबित करना गलत है। कोर्ट ने इसी के साथ दरोगा व हेड कांस्टेबल के निलंबन को गलत मानते हुए आदेश रद्द कर याचिका मंजूर कर लिया है।

याचिका के अनुसार याचीगण लाल प्रताप सिंह उपनिरीक्षक एवं बृजेश कुमार मुख्य आरक्षी, विशेष अभिसूचना विभाग ललितपुर में कार्यरत थे। इन्हें उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-17 (1) (क) के प्राविधानों के तहत दिनांक 24 जनवरी 2024 को निलंबित कर दिया गया और निलंबन की अवधि में पुलिस अधीक्षक (क्षेत्रीय) विशेष शाखा अभिसूचना विभाग कानपुर नगर से संबद्ध कर दिया गया।

याचीगणों पर निलंबन आदेश में यह आरोप था कि इन्होंने अपने से जुड़े लोगों को कहा कि अगर किसी मामले में कथित न्याय नहीं मिल रहा है, तो वे मुख्यमंत्री के यहां जाकर धरना, प्रदर्शन और आत्मदाह  करें। यह भी कहा कि ऐसा लिखकर प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक को दें, जिससे जिला स्तर से ही काम हो जाएगा।

इस निलंबन आदेश दिनांक 24 जनवरी 2024 के विरूद्ध याचीगण  ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कीं। याचिका में कहा गया है कि याचीगण के ऊपर निलंबन आदेश में जो आरोप लगाये गए हैं वह बिल्कुल निराधार एवं असत्य हैं।

याची पुलिस कर्मियों के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट को बताया कि  निलंबन आदेश जारी करने के बाद पुलिस अधीक्षक (क्षेत्रीय) विशेष शाखा अभिसूचना विभाग उत्तर प्रदेश के आदेश दिनांक 29 जनवरी 2024 के तहत मंडलाधिकारी अभिसूचना विभाग उत्तर प्रदेश कानपुर को प्रारंभिक जांच आवंटित की गई तथा मंडलाधिकारी अभिसूचना विभाग उत्तर प्रदेश कानपुर नगर ने याचीगणों को इस प्रकरण में अपना अभिकथन प्रारंभिक जांच में अंकित कराने के लिए दिनांक 13 फरवरी 2024 को निर्देशित किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि निलंबित करते समय सक्षम अधिकारी के पास कोई साक्ष्य नहीं था और बिना ठोस साक्ष्य के निलंबित करने का आदेश मनमाना कार्य है। बहस में यह भी कहा गया कि निलंबन आदेश में गलत तथ्य दर्शाए गए हैं। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने अपने आदेश में कहा है कि रिकॉर्ड अवलोकन करने के बाद यह प्रतीत होता है कि याचीगणों के विरुद्ध प्रारंभिक जांच विचाराधीन है। कोर्ट ने सच्चिदानंद त्रिपाठी के केस में प्रतिपादित की गई व्यवस्था को आधार मानते हुए निलंबन आदेश को विधि विरुद्ध माना।
Courtsyamarujala.com
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