मथुरा की राजनीतिक बिसात पर हाथी ने हमेशा मात खाई। 1991 से 2019 तक सात बार बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ी। तीन बार बसपा प्रत्याशी उपविजेता रहे।
कान्हा की धरा पर हाथी वाली पार्टी बसपा ने लोकसभा चुनावों में हमेशा मात खाई है। पार्टी ने कई धुरंधरों पर दांव खेला। दलित के साथ ब्राह्मण-मुस्लिम कार्ड भी खेला, लेकिन पार्टी प्रत्याशियों को अब तक जीत का सेहरा नहीं बंध सका है। वर्ष 1991 से 2019 तक बसपा सात बार अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ी है। इनमें तीन बार उपविजेता भी रही। 2019 में सपा-रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी।
बीएसपी ने 2019 में इस सीट पर सपा-बसपा, रालोद गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था और यह सीट रालोद के हिस्से में गई, लेकिन 2014 के चुनाव में बसपा ने योगेश कुमार द्विवेदी को चुनाव लड़ाया। इस चुनाव में 10,76,868 मत पसे, जिनमें से 1,73,572 वोट (16.12 प्रतिशत) बसपा के खाते में गए। 2009 में बसपा से चुनाव लड़े श्याम सुंदर शर्मा 2,10,257 (28.93 प्रतिशत) वोट पाकर उपविजेता रहे। 2004 में चौधरी लक्ष्मीनारायण 1,49,268 वोट पाकर उपविजेता रहे।
इसी तरह 1999 में कमलकांत उपमन्यु चुनाव लड़े, जिन्हें 1,18,720 वोट मिले और तीसरे स्थान पर रहे थे। पार्टी ने 1998 में पूरन प्रकाश को चुनाव लड़ाया, वे 1,13,801 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 1996 में सरदार सिंह 1,02,567 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे थे। 1991 में भगवान सिंह 26,107 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे। इन आंकड़ों के आधार पर जानकार मान रहे हैं कि बसपा का पलड़ा पूर्व में भारी रहा था, लेकिन वर्तमान में पार्टी का कोर वोटर खिसक गया है।
दलित के साथ ब्राह्मण या मुस्लिम कार्ड
बसपा इस बार के चुनाव में दलित-ब्राह्मण कार्ड खेलने की तैयारी में है। पंडित कमलकांत उपमन्यु को प्रत्याशी के तौर पर लगभग तय कर दिया है। सिर्फ अधिकारिक घोषणा बाकी है। दरअसल, 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सुप्रीमो ने दलित-ब्राह्मण कार्ड खेला था। पार्टी अकेले दम पर विधानसभा में पहुंची। यही फार्मूला पार्टी ने मथुरा में 1999, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में मथुरा सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारकर खेला था और पार्टी टॉप-3 में रही थी।
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