प्रायः देखने में आता है कि कोई कोई व्यक्ति अपने अत्यंत प्रिय व्यक्ति के निधन पर इतना अधिक दुःखी हो जाता है कि यदि उसके दुःख को समय रहते हुए न समझा गया तो वह अवसाद ( डिप्रेशन ) में चला जाता है जिसकी परिणति आत्महत्या तक में हो जाती है। ऐसे व्यक्ति के दुःख को कम करने के लिए उसके शुभचिंतक किस्म किस्म के उपाय करने लगते हैं। आज एक ऐसा ठोस एवं रचनात्मक उपाय मेरे सामने आया जिसने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया। उसे आपके साथ साझा कर रहा हूं–
हाल ही में मैं अपनी ITR भरवाने के संबंध में अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) महोदय श्री शास्वत सिंघल के पास गया। जब ITR संबंधी बात पूरी करके चलने लगा तो उन्होंने मुझसे रुकने के लिए कहा और अपनी दराज से निकालकर एक पुस्तक दी। पुस्तक का शीर्षक है ” श्री हरीश जिंदाल-एक विचार ” जिसकी लेखिका हैं – अनुपमा सिंघल। पुस्तक देने के बाद जब मैंने किताब के बारे में उनसे कुछ पूछना शुरू किया तो उन्होंने विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि एक साल पहले 10 जुलाई 2023 को मेरी पत्नी अनुपमा के पिता की मृत्यु हो गई। वह 83 वर्ष के थे और गाजियाबाद के जाने माने उद्योगपति एवं समाजसेवी थे। अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ साथ समाज में भी बहुत लोकप्रिय थे। मेरी पत्नी के वे अत्यंत प्रिय थे। उनकी मृत्यु से पत्नी को इतना अधिक आघात पहुंचा कि वह अवसाद में जाती दिखाई देने लगी। इससे सभी बहुत चिंतित हुए । तरह तरह के सुझाव सामने आने लगे। कुछ ने सलाह दी कि किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाइए। तभी मेरे मन में एक विचार आया और मैंने उस पर अमल करते हुए अपनी पत्नी को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह अपने पिता से जुड़ी बचपन से लेकर अब तक की सभी यादों को लिखना शुरू करें। एक साथ ज्यादा नहीं बल्कि एक पृष्ठ रोजाना लिखें। उन्होंने लिखना शुरू कर दिया। लगभग 6 माह में उनका वह लिखा हुआ एक पुस्तक प्रकाशित करने के लायक हो गया। उसे छपवाया गया और तीन दिन पहले 10 जुलाई 2024 को गाजियाबाद में संपन्न हुई उनकी पहली बरसी के अवसर पर परिवार के लोगों के बीच इसका सामान्य रूप से विमोचन कर दिया गया।
सीए साहब ने अपने ऑफिस से सटे हुए घर से अपनी पत्नी को बुलाया और मुझसे मिलवाया। यद्यपि मैं उनसे पहले भी कई बार मिल चुका था लेकिन मेरे हाथ में अपनी पुस्तक को देख उस समय जितनी अधिक प्रसन्न वह दिखाई दीं उतनी पहले कभी नहीं दिखीं थीं । खुश हो भी क्यों न ? आखिर , उन्होंने अपने प्रिय पिता पर यादगार एक पुस्तक जो लिखी है।
मैंने उनसे अधिक बातें नहीं की, सिर्फ इतना कहा कि आपने अपने पिता पर इतनी अच्छी पुस्तक लिखकर उन्हें अमर कर दिया। इसे सुनकर उनके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी।
घर पर आकर मैंने जब पुस्तक पढ़नी शुरू की तो पुस्तक इतनी अधिक अच्छी लगने लगी कि इसे एक सिटिंग में ही पूरी करने की इच्छा हुई। खैर , व्यस्तता को देखते हुए एक सिटिंग में तो नहीं पूरी हुई लेकिन 106 पृष्ठ की इस पुस्तक को तीन दिन में पूरी पढ़ ली।
यद्यपि पुस्तक किसी सिद्धहस्त लेखक ने नहीं लिखी है बल्कि एक घरेलू महिला ने लिखी है जिसे उन्होंने अपने प्रोफेशनल पति एवं परिवार के सहयोग से पूरी की है । लेखिका घरेलू महिला जरूर हैं लेकिन उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए मनोविज्ञान में उपाधि ली हुई है और काफी वर्षों के बाद प्रो राजेंद्र सिंह विश्वविद्यालय से एलएलबी भी किया हुआ है।
किताब को पढ़कर लगा कि इसे तैयार करने में बड़ी सूझबूझ के साथ मेहनत की गई है जिसमें रोचकता के साथ साथ बहुत ही प्रेरणादायक बातें हैं। किताब बड़ी मार्मिक भी है। किताब पढ़ते हुए कई दृश्य ऐसे पढ़ने को मिले जब मेरी आंखें नम हो गईं। किताब में बहुत से दुर्लभ फोटो छापे गए हैं। साथ ही उनसे जुड़े परिवार के सभी व्यक्तियों के उद्गार भी शामिल किए गए हैं। इससे पुस्तक में स्वर्गीय हरीश जिंदल का प्रेरणादायक व्यक्तित्व विविधता के साथ सामने आया है।
किताब को पढ़कर पता चलता है कि हरीश जिंदल जी बड़े प्रतिभाशाली एवं मानवीय गुणों से ओतप्रोत थे। उन्होंने मात्र 19 साल की उम्र में आईआईटी, खड़गपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ हासिल की थी । उन्होंने गाजियाबाद में अपना उद्योग खड़ा किया। वह रोटरी क्लब के अध्यक्ष थे और भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी थे। हरीश जी के एक पुत्र और चार पुत्रियां हैं। लेखिका अनुपमा सिंघल भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं। हरीश जी अपने पीछे पत्नी के अलावा बेटा बेटियों के भरे पूरे एवं संपन्न परिवार छोड़कर गए हैं। किताब को पढ़कर यह भी समझ में आता है कि एक अच्छे संस्कारवान परिवार में छोटे बड़े के बीच किस प्रकार स्नेह एवं सम्मानपूर्वक संबंध निभाए जाते हैं।
किताब को पढ़ने के बाद मैं तो यही कहूंगा कि यह पुस्तक घर घर में होनी चाहिए और छोटे बड़े सभी को पढ़नी चाहिए। हर किसी के जीवन में कोई व्यक्ति अत्यंत प्रिय होता है और उसके बारे में कुछ लिखने की इच्छा भी होती है। लेकिन लिखने की कोशिश नहीं कर पाते हैं। उन लोगों के लिए यह पुस्तक एक मॉडल का काम करेगी।
प्रयागराज निवासी प्रतिष्ठित चार्टर्ड अकाउंटेंट श्री शास्वत सिंघल से उनके फोन नंबर 9415214625 पर संपर्क करके पुस्तक प्राप्त की जा सकती है।
अंत में पुस्तक की लेखिका श्रीमती अनुपमा सिंघल को इस बेहतरीन पुस्तक को लिखने एवं इसके लिए उन्हें प्रेरित करने के लिए उनके पति श्री शास्वत सिंघल को बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं खूब सारी शुभकामनाएं…..
स्व.हरीश जिंदल जी को विनम्र श्रद्धांजलि…..
अनंत अन्वेषी।