सनातन परंपरा की विशेषता है कि कोई भी शुभकार्य समाप्त नहीं होता, पुनः होने की उम्मीद के साथ संपन्न होता है। दुर्गा पूजा, छठ, गणपति उत्सव एक बार संपन्न होते ही अगले वर्ष के लिए मन तैयार हो जाता है।
सनातन परंपरा की विशेषता है कि कोई भी शुभकार्य समाप्त नहीं होता, पुनः होने की उम्मीद के साथ संपन्न होता है। दुर्गा पूजा, छठ, गणपति उत्सव एक बार संपन्न होते ही अगले वर्ष के लिए मन तैयार हो जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा नवरात्र के दौरान मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद फिर वापस ससुराल जाती हैं। मां के रुकने के उपलक्ष्य में दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है।
आश्चे बोछोर आबर होबे… अर्थात ससुराल को विदाई देते हुए दोबारा जल्दी आना का उद्घोष बंगाली समुदाय के पंडालों में गूंज उठा। मंगलवार को भेलूपुर से लेकर दशाश्वमेध तक बंगाली समुदाय ने मां जगदंबा को भीगी पलकों के साथ विदाई दी। बैंड बाजे की धुन पर थिरकती हुए महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म भी निभाई और जब विदाई का मौका आया तो आंखें भी छलक उठीं।
दशमी तिथि पर प्रयागराज के कटरा, राजरूपपुर, सिविल लाइंस, चौक, टैगोर टाउन, अशोक नगर, ममफोर्डगंज आदि इलाकों में पंडालों में मां जगदंबा की विधि-विधान से विदाई की गई। शाम ढलते ही बंगाली पंडालों की रौनक देखते ही बन रही थी। महिलाएं कतारबद्ध होकर माता को सिंदूर अर्पित कर रहीं थीं और एक दूसरे को सिंदूर लगा रही थीं। कई पंडालों में तो सिंदूर की होली ऐसी खेली गई कि हर चेहरे पर माता के सिंदूर की लालिता बिखरी नजर आ रही थी।
सिंदूर खेला की समाप्ति के बाद मां को विदाई दी गई। मां का विसर्जन कर उनसे जल्दी दोबारा वापस आने की प्रार्थना की गई। मंगलवार को दोपहर के बाद से ही पंडालों में विदाई की रस्में शुरू हो गईं। पहले सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाया और मिठाई खिलाई। इसके बाद सभी महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाना शुरू किया। पूरा पंडाल सिंदूरी रंगत में रंगा नजर आ रहा था। इसके बाद धुनुची नृत्य के साथ माता को विदाई दी गई और बोरन की प्रथा भी निभाई गई।
निभाई गई बोरन की परंपरा
सनातन परंपरा की विशेषता है कि कोई भी शुभकार्य समाप्त नहीं होता, पुनः होने की उम्मीद के साथ संपन्न होता है। दुर्गा पूजा, छठ, गणपति उत्सव एक बार संपन्न होते ही अगले वर्ष के लिए मन तैयार हो जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा नवरात्र के दौरान मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद फिर वापस ससुराल जाती हैं। मां के रुकने के उपलक्ष्य में दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है।
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