कैसरगंज लोकसभा सीट पर किसी भी दल ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। सियासी रण में टिकट की गुत्थी में उलझे दलों से जनता को उबारने का दांव चला गया है। सन्नाटे से बेसुर माहौल में सियासी बयार से पैठ बनाने की दस्तक तेज हो गई है।
संसदीय चुनाव के दौर में एक नई इबारत लिखने की ओर बढ़ रहे कैसरगंज क्षेत्र की चर्चा प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में हो रही है। सन्नाटे के दौर से गुजर रहे कैसरगंज के सियासी रण में बहार लाने की कोशिशें अब रंग दिखाने लगीं हैं। कयासों की कलाबाजियों में थमी सियासी बयार से बेसुरे हो रहे माहौल में सुरों का रस घोलने की कवायद से कई संकेत मिले हैं।
टिकट की गुत्थी में उलझे दलों में भी हाल के दिनों में सियासी रण में शुरू हुए कदमताल से हलचल मच गई है। यह अलग बात है कि लाख प्रयासों के बाद भी कोई दल चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं है। इससे सियासी माहौल की तपिश बढ़ नहीं रही है, जबकि रणबांकुरों के नामांकन का दरवाजा खुल चुका है।
दो जिलों में फैले कैसरगंज संसदीय सीट हमेशा से ही सियासत की केंद्र में रही है। हिंदुत्व को धार देने के लिए चर्चित क्षेत्र सपा व कांग्रेस का गढ़ भी रहा है। बीते दो संसदीय चुनावों से भाजपा का ही कब्जा है। अभी तक कद गढ़ने और दलों का गढ़ होने से चर्चा में रहने वाला कैसरगंज अब सियासती दांवपेच से चर्चित है। यहां की नुमाइंदगी कर रहे सियासत के राजा आरोपों से घिरे तो बात दूर तक बात गई।
चुनाव में ताल ठोंकने की बारी आने पर दलों ने होंठ तो सिले ही कदम तक रोक लिए। इससे संसदीय सीट के भविष्य के सवालों की धूम मची। चुनावी समर में छाई खामोशी को तोड़ने के लिए सियासदां ने मंच सजाए और टिकट की गुत्थी से जूझे दलों के दांव में उलझे लोगों को उबारने की कोशिशों को आगे बढ़ाया। इससे कयासबाजी और तेज हो गई है।