हाथरस में हुई बड़ी घटना के बाद कथावाचक नारायण साकार को मिली क्लीन चिट के साथ मायावती ने उन पर सीधा हमला शुरू कर दिया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जिन दलितों की मायावती खुद को नेता बताती हैं, वहीं दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों की बड़ी संख्या नारायण साकार की भक्त है।
हाथरस में हुई बड़ी घटना के बाद बहुजन समाज पार्टी ऐसी पार्टी है, जो खुलकर कथावाचक नारायण साकार की गिरफ्तारी की मांग कर रही है। लगातार सोशल मीडिया पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती न सिर्फ नारायण साकार को निशाने पर ले रही हैं, बल्कि उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर एक बड़े वोट बैंक को भी साध रही हैं। सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की हो रही हैं कि आखिर मायावती नारायण साकार के खिलाफ खुलकर इस कदर क्यों बोल रही हैं। वह भी तब जब कभी बहुजन समाज पार्टी की सरकार में नारायण साकार की तूती बोला करती थी। दरअसल राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मायावती ने नारायण साकार पर हमला कर दलितों को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। इस संदेश में बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकार अपना बड़ा सियासी फायदा भी देख रहे हैं।
हाथरस में हुई बड़ी घटना के बाद कथावाचक नारायण साकार को मिली क्लीन चिट के साथ मायावती ने उन पर सीधा हमला शुरू कर दिया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जिन दलितों की मायावती खुद को नेता बताती हैं, वहीं दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों की बड़ी संख्या नारायण साकार की भक्त है। फिर मायावती का यह हमला कितना सियासी रूप से कारगर है। राजनीतिक जानकार उपेंद्र सिंह कहते हैं कि दरअसल मायावती का अपना जो कोर वोट था वही खिसक चुका है। ऐसे में वह हाथरस में हुई घटना के बाद आक्रामक होकर नारायण साकार को निशाने पर लेने से उनका कुछ नुकसान नहीं है। तर्क देते हुए उपेंद्र कहते हैं कि दलित पिछड़े और अति पिछड़े की बड़ी संख्या नारायण साकार की भक्त है। अगर वह मायावती के नारायण साकार को निशाने पर लिए जाने से नाराज भी होती हैं, तो भी मायावती का कोई बड़ा नुकसान होता नहीं दिखता है। क्योंकि इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही मायावती से दूर जा चुका है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकारों की उम्मीद यही है कि मायावती की अपील के साथ दलितों पिछड़ों और अतिपिछड़ों का एक बड़ा तबका उनके साथ जुड़ सकता है।
बहुजन समाज पार्टी से जुड़े रणनीतिकारों की मानें तो सियासी रूप से यह दांव मायावती के लिए कारगर नजर आ रहा है। यही वजह है कि मायावती खुलकर इस मामले में नारायण साकार को निशाने पर ले रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि यह बात भी सही है कि हाथरस के पूरे घटनाक्रम पर जिस तरीके से सियासी दल चुप्पी साधे हैं, उसमें मायावती राजनीतिक तौर पर अपने लिए संजीवनी तलाश रहीं हैं। पार्टी से जुड़े नेताओं का मानना है कि अगर ऐसा करके पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड क्षेत्र में दलितों के बड़े वर्ग को अपनी ओर मोड़ा जा सकेगा, तो आने वाले चुनाव में उसका बड़ा फायदा भी दिखने वाला है। शुक्ल कहते हैं कि समझने वाली बात यही है कि बसपा की सरकार में नारायण साकार की तूती बोलती थी, लेकिन अब वही बसपा सुप्रीमो नारायण साकार को निशाने पर लेकर गिरफ्तारी की लगातार मांग कर रही हैं।