प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन कराने और यौन शोषण के आराेपी की जमानत याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है। धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को धर्मांतरण करने के अधिकार के रूप में नहीं बदल सकते। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने यह टिप्पणी कर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और यौन शोषण के आराेपी अजीम को जमानत देने से इन्कार कर दिया।
बदायूं के थाना कोतवाली में अजीम पर युवती का जबरन धर्म परिवर्तन कराने व उसका यौन शोषण करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोपी ने जमानत के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई है। वकील ने दलील दी कि आवेदक को झूठा फंसाया गया है।
पीड़िता ने संबंधित मामले में अपने बयान में आवेदक से शादी की पुष्टि की है। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने जमानत का विरोध करते हुए पीड़िता के सूचना देने वाले के बयान का हवाला दिया, जिसमें इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया गया था।
कोर्ट ने तथ्यों का अवलोकन कर कहा कि सूचना देने वाले ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि आवेदक और उसके परिवार के सदस्य उसे मजबूर कर रहे थे। कोर्ट ने आवेदक की जमानत अर्जी खारिज कर दी।
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