Friday, September 13, 2024
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अमर उजाला संवाद : आपराधिक न्याय शास्त्र की आत्मा को चोट पहुंचाने वाले बदलाव गलत, वकीलों ने बेबाकी से रखी बात

कानून के जानकारों का कहना था कि सैकडों वर्षों के बाद देशवासी यह महसूस करेंगे कि उन्हें लार्ड मैकाले की दंड संहिता से मुक्ति मिली है। अब उन्हेें दंड नहीं न्याय मिलेगा। लेकिन, यह कानून हड़बड़ी में बिना विशेषज्ञों के गहन मंथन और मशविरा के ही लागू कर दिया गया है।

नए आपराधिक कानून में हुए बदलावों को लेकर मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायविदों ने अपनी बेवाक राय रखी। अमर उजाला कार्यालय में आयोजित संवाद में नई संहिता बीएनएस,बीएनएसएस और बीएसए को विस्तार से परिभाषित किया गया। कानून के जानकारों का कहना था कि पुरानी भारतीय दंड संहिता को बदलकर न्याय संहिता किया जाना स्वागत योग्य है। लेकिन बिना प्रचार-प्रसार के दूरगामी परिणामों को समझे बगैर यह परिवर्तन नए सिरे से समीक्षा की मांग करता है।

कानून के जानकारों का कहना था कि सैकडों वर्षों के बाद देशवासी यह महसूस करेंगे कि उन्हें लार्ड मैकाले की दंड संहिता से मुक्ति मिली है। अब उन्हेें दंड नहीं न्याय मिलेगा। लेकिन, यह कानून हड़बड़ी में बिना विशेषज्ञों के गहन मंथन और मशविरा के ही लागू कर दिया गया है। इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों और अपराधिक न्याय सिद्धांतों की आत्मा को चोट भी पहुंची है। लिहाजा, इस पर पुर्नविचार और संशोधन की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता। वकीलों का मानना है कि बदले गए कानून से न्यायपालिका कमजोर और कार्यपालिका यानी पुलिस मजबूत होगी।

आपराधिक कानून और मौलिक अधिकार का सीधा रिश्ता है। बदले कानून की कई धाराएं मौलिक अधिकारों पर अतिक्रमण करने वाली है। पुलिस हिरासत बढ़ाते हुए उनके समक्ष दिए बयान को साक्ष्य के रूप में ग्राह्य मानना गलत है। – अखिलेश सिंह, पूर्व शासकीय अधिवक्ता, उच्च न्यायालय

नया कानून आपराधिक न्याय सिद्धांतों के विपरीत है। यह कानून लागू नहीं किया गया है नागरिकों पर बोझ की तरह लादा गया है। नए कानून पर न चर्चा हुई न कानूनी विशेषज्ञों की राय ली गई। प्रशासनिक अधिकारियों की मनमर्जी से बने कानून सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था के खिलाफ हैं। गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के बजाए अब पुलिस सीधे 90 दिन तक आरोपी को हिरासत मेें रख सकेगी। जो नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन है। सीपी उपाध्याय, पूर्व सचिव, हाइ्रकोर्ट बार एसाे.

नए कानून में मॉब लिंचिंग के खिलाफ किया गया प्रावधान काबिल-ए- तारीफ है। जुर्माने के बदले समाज सेवा की योजना भी बेहतरीन है। लेकिन, इनका क्रियान्वयन कैसे होगा प्रावधान स्पष्ट नहीं है। धर्मेंद्र सिंह, पूर्व उपाध्यक्ष, हाइ्रकोर्ट बार एसाे.

उच्च न्यायालय से और सर्वोच्च न्यायालय से दंडित होने के बाद समय सीमा में अपील न करने पाने वाले अभियुक्त अब सीधे राज्यपाल और राष्ट्रपति से गुहार लगा सकेंगे।आईपीसी ब्रिटिश कानून था, जो भारतीयों को दंडित करने के लिए बनाया गया था। अब भारतीय न्याय संहिता न्याय की अवधारणा लेकर आई है। नए कानून में महिलाओं को न्याय मिलेगा। – स्वाति अग्रवाल, अधिवक्ता उच्च न्यायालय।

 सीआरपीसी की जगह लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 187 पुलिस रिमांड को 60 -90 दिन तक बढ़ाने का प्राविधान करती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक यह 15 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। इससे पुलिस हिरासत में होने वाली मौतें और मानवाधिकार हनन की घटनाएं बढ़ेगी। -आशुतोष तिवारी, अधिवक्ता उच्च न्यायालय

भारतीय न्याय संहिता में महज 10 धाराएं जोड़ी और चार हटाई गई हैं। यह काम किताब बदले बिना संशोधन के जरिए भी किया जा सकता था। बीएनएस की धारा 111 के तहत जन आंदोलन करने पर अजीवन कारावास तक सजा होगी तो धारा 113 के तहत सरकार के खिलाफ लिखने और भाषण देने को संप्रभुता के लिए खतरा बता कर दंडित किया जा सकेगा। – राय साहब यादव, अधिवक्ता उच्च न्यायलय

समय संग बदलाव ठीक है, लेकिन ये भी जरूरी है कि मौलिक अधिकार बचा रहे। बीएनएसएस के मुताबिक पुलिस एफआईआर दर्ज करने में तीन से 14 दिन तक का समय ले सकती है। दोबारा किए गए अपराध में जमानत का अधिकार खत्म होगा। – अरविंद कुमार राय,अधिवक्ता उच्च न्यायालय

1860 से लागू आईपीसी में बदलाव समय की मांग थी। धाराओं में हुए बदलाव से वकालत में व्यावहारिक दिक्कत तो होगी, लेकिन समय लगेगा पर धीरे -धीरे प्रचलन में आ जाएगा। नया कानून है सुधार की जरूरत है। – अभिषेक आहूजा, अधिवक्ता उच्च न्यायालय

साक्ष्य अधिनियम में इलेक्ट्रानिक साक्ष्य का दायरा बढ़ाया गया है। इससे न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी, लेकिन फोरेंसिक लैब न होना बड़ी मुसीबत है। कानून तभी कामयाब हो सकता है जब उसके क्रियान्वयन की समुचित व्यवस्था हो। – मनु शर्मा, अधिवक्ता उच्च न्यायालय

नए कलेवर में पुराने कानून ही हैं। तकनीकी बदलाव समय की की जरूरत है, लेकिन अतार्किक बदलाव बोझ सरीखा है। लोगों को अब दाेनों कानून पढ़ने पड़ रहे हैं। – राजू सिंह, अधिवक्ता उच्च न्यायालय

जिस समय देश की दिशा-दशा बदलने वाले कानून पर विस्तृत चर्चा होनी थी, उस वक्त विपक्ष के सौ से ज्यादा सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। ऐसे में बिना व्यापक चर्चा के लागू कानून संशोधन योग्य है। – केसी यादव,अधिवक्ता उच्च न्यायालय

नया कानून सरकार की जिद के अलावा कुछ नहीं है। विश्व में सबसे बेहतरीन दंड संहिता आईपीसी थी। समय-समय पर जरूरत के अनुसार संशोधन हुआ है। अब नए कानून और पुराने कानून में वकील, मुवक्किल और अदालत सब कई वर्षों उलझे रहेंगे। -जनार्दन यादव, अधिवक्ता उच्च न्यायालय

अपराधों की प्रकृति बदल रही है। लेकिन, कानून नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए होने चाहिए। नया कानून नागरिक सुरक्षा से ज्यादा पुलिस राज स्थापित करने की दिशा में अग्रसर होगा। – हरे राम तिवारी,अधिवक्ता उच्च न्यायालय

 

 

Courtsy amarujala.com

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